Moral Story In Hindi Story For Kids In Hindi

Top 10 Moral Stories In Hindi For Kids  

Top 10 Moral Stories In Hindi For Kids, बच्चों के लिए शिक्षाप्रद कहानियां इस पोस्ट में शेयर की जा रही हैं।

Top 10 Moral Stories In Hindi For Kids  

शेर और खरगोश की कहानी

एक जंगल में बलशाली शेर रहता था। वह जंगल के जानवरों का शिकार कर अपनी भूख मिटाता था। जब भी वह शिकार पर निकलता, तब जो भी जानवर उसे दिखाई पड़ता, वह उसे मार डालता। धीरे धीरे जंगल में जानवरों की संख्या घटने लगी।

एक दिन जंगल के सभी जानवरों ने एक सभा बुलाई, जिसमें सभी इस बात पर चर्चा करने लगे कि इस समस्या का निराकरण कैसे किया जाए। चर्चा के बाद सबने निर्णय लिया कि वे शेर के पास जाकर निवेदन करेंगे कि इस तरह जंगल के सारे जानवरों का शिकार ना करें।

जानवरों का एक समूह शेर के पास पहुंचा। शेर उन्हें देखकर चौंक गया और उनके आने का कारण पूछा। जानवरों का एक समूह शेर के पास पहुंचा। शेर उन्हें देखकर चौंक गया और उनके आने का कारण पूछा। 

एक बूढ़ा बंदर बोला, “वनराज, हम यहां एक निवेदन लेकर आए हैं।”

“कहो!” 

“वनराज! आप जब भी शिकार के लिए निकलते हैं, तो कई जानवरों को मार डालते हैं। आप उन्हें खा भी नहीं पाते। इससे जंगल में जानवर धीरे धीरे कम हो रहे हैं।”

“तो मैं क्या करूं!” शेर ने कहा, “मुझे अपनी भूख मिटाने के लिए शिकार पर निकलना ही पड़ता है। शिकार के समय जो जानवर मुझे दिखेगा, मैं उसे मारूंगा ही।”

बंदर कुछ सोचकर बोला, “वनराज! हमारा निवेदन है कि आप शिकार पर न निकलें, अपनी गुफा में ही रहें।”

“ऐसे में तो मैं भूखा मर जाऊंगा।”

“नहीं वनराज! अब से रोज जंगल का एक जानवर आपके पास आएगा। आप उसे खाकर अपनी भूख मिटा लीजिएगा।”

शेर ने हामी भर दी, लेकिन साथ ही चेतावनी भी दी कि जिस दिन कोई जानवर मेरे पास नहीं पहुंचा, उस दिन मैं वह सारे जबवारों को मार डालेगा।

जानवरों ने शेर की बात मान ली और वापस लौट गए। उस दिन के बाद से रोज एक जानवर शेर का भोजन बनने उसके पास जाने लगा। रोज एक जानवर मारा जाता, इस बात का जानवरों को दुख था, लेकिन राहत ये थी कि अब एक साथ बड़ी संख्या में जानवर मारे नहीं जा रहे थे।

एक दिन एक छोटे खरगोश को शेर का भोजन बनने जाना था। वह शेर की गुफा की ओर जाने लगा। वह इतना डरा हुआ था कि उसके कदम नहीं उठ रहे थे। जाते जाते वह सोचने लगा कि क्यों ना कोई ऐसी युक्ति की जाए कि शेर से ही छुटकारा मिल जाए। युक्ति सोचते सोचते जब वह रास्ते से गुजर रहा था, तो उसे एक कुआं दिखाई पड़ा। वह कुएं के पास गया और झांककर देखा, तो उसे उसमें अपनी परछाई नजर आई। उसे शेर से छुटकारा पाने की युक्ति सूझ गई।

वह शेर के पास पहुंचा, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। भूख के मारे शेर का बुरा हाल था। खरगोश को देखते ही वह दहाड़ा, “क्यों ये पिद्दी से खरगोश, तेरी इतनी जुर्रत कि तू इतनी देर से आए। अब मेरी भूख इतनी बढ़ गई है कि मैं तेरे बाद तेरे पूरे परिवार को मारकर खा जाऊंगा।”

खरगोश ने हाथ जोड़ लिए और कहा, “नहीं वनराज! ऐसा मत कीजिएगा। मैं जानता था कि मैं छोटा सा प्राणी आपकी भूख मिटाने के योग्य नहीं। इसलिए मैं अकेला नहीं, बल्कि तीन खरगोश आपका भोजन बनने आपके पास आ रहे थे। लेकिन रास्ते में हमें एक शेर मिला। उसने दो खरगोशों को खा लिया और मुझे आपको ये संदेश देने भेजा कि उस शेर ने खुद को जंगल का राजा घोषित कर दिया है। अब से सारे जानवरों को उसका भोजन बनने जाना होगा।”

खरगोश की बात सुनकर शेर को क्रोध आ गया। वह दहाड़ते हुए बोला, “मेरे होते हुए जंगल का राजा कोई और नहीं हो संयम”

“तब तो वनराज आपको उससे युद्ध करना पड़ेगा। उसने आपको ललकारा है।”

“कहां रहता है वो। मुझे ले चल। मैं आज ही उसका काम तमाम करता हूं।” शेर दहाड़ते हुए बोला।

“चलिए वनराज!” कहकर खरगोश चल पड़ा। शेर उसके साथ चलने लगा।

खरगोश शेर को उसी कुएं के पास ले गया, जो रास्ते में पड़ा था। वहां पहुंच कर उसने शेर से कहा, “वनराज! वो शेर यहीं रहता है। आप उसे युद्ध के लिए ललकारिए।”

शेर ने आगे बढ़कर कुएं में झांककर देखा, तो उसे अपनी परछाई दिखाई पड़ी। शेर ने सोचा कि यही वह शेर है, जो जंगल का राजा बनना चाहता हूं। उसने दहाड़ लगाकर उसे ललकारा, कुएं की दीवार से टकराकर उसे अपनी दहाड़ की प्रतिध्वनि सुनाई पड़ी। खरगोश बोला, “देखिए महाराज! वो आपकी चुनौती स्वीकार कर रहा है।”

ये सुनना था कि शेर ने आव देखा न ताव और कुएं में कूद पड़ा। कुएं में कूदने के बाद वो गहरे पानी में डूब गया और अपनी जान से हाथ धो बैठा। इस प्रकार चतुर खरगोश ने न सिर्फ़ खुद की जान बचाई, बल्कि जंगल के सारे जानवरों की भी जान बचाई।

सीख

बुद्धि का उपयोग कर किसी भी समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।

बोलती गुफा की कहानी 

बहुत समय पहले की बात है। एक जंगल में एक शेर रहता था। एक दिन वह भोजन की तलाश में निकला। दिन भर वह जंगल में भटकता रहा, लेकिन उसे कोई शिकार नहीं मिला। वह काफ़ी दूर निकल आया और भूख से उसकी जान निकलने लगी थी। दिन भर भटकने के कारण वह बहुत थक भी गया था। वापस लौटकर अपनी गुफा में जाना भी उसके लिए मुहाल था।

उसे वहीं पेड़ों के झुरमुट के पीछे एक गुफा दिखाई पड़ी। वह गुफा में चला गया। उसने देखा कि गुफा में कोई नहीं है। शेर समझ गया कि गुफा में रहने वाला जानवर भोजन की तलाश में बाहर गया है। उसने सोचा कि यही गुफा में छुप कर बैठ जाता हूं। जब वह जानवर वापस लौटेगा, तो उसे मारकर खा जाऊंगा और अपनी भूख मिटा लूंगा।

वह गुफा के एक कोने में छिप कर बैठ गया और इंतज़ार करने लगा। काफ़ी देर इंतजार करने के बाद उसे किसी के कदमों की आहट सुनाई पड़ी। वह सतर्क होकर बैठ गया।

गुफा एक गीदड़ की थी। गीदड़ जब गुफा के पास पहुंचा, तो उसे गुफा में जाते शेर के पंजों के निशान दिखाई दिए, लेकिन गुफा से बाहर आते नहीं। वह समझ गया कि गुफा में कोई शेर छुप कर बैठा हुआ है। 

उसने चलाकी दिखाई और गुफा के अंदर न जाकर बाहर से ही बोला, “मेरी प्यारी गुफा! क्या बात है, आज वापस आने पर तुमने मेरा स्वागत नहीं किया। रोज तो तुम खुशी से चहकते हुए मेरा स्वागत करती हो। आज बोल क्यों नहीं रही।”

गीदड़ की बात अंदर बैठे शेर ने सुनी, तो सोचने लगा कि ज़रूर ये गुफा चमत्कारी है और गीदड़ के वापस आने पर बोलती है। कहीं गुफा के न बोलने पर गीदड़ वापस न चला जाए, ये सोचकर शेर मीठी आवाज बनाकर बोला, “आओ मित्र, अंदर आओ। मैं तुम्हारा स्वागत करती हूं।”

शेर की आवाज सुनकर गीदड़ गुफा के अंदर नहीं गया, बल्कि अपनी जान बचाकर वहां से भाग गया। शेर गुफा में बैठकर गीदड़ का इंतज़ार करता रहा। लेकिन गीदड़ तो भाग चुका था। काफ़ी देर इंतज़ार करने के बाद शेर को समझ आ गया कि गीदड़ उसे मूर्ख बना गया है। अब वह हाथ मलने के सिवाय कर ही क्या सकता था। मुंह लटकाकर वह भोजन की तलाश में निकल पड़ा।

सीख

संकट को पहले ही भांप लेने में समझदारी है। 

घमंडी गधा की कहानी

शाम का समय था। एक जौहरी और लोहे का व्यापारी अपने अपने गधों के साथ जंगल पार कर रहे थे। लोहे के व्यापारी के गधे की पीठ पर लोहे की छड़ लदी हुई थीं, वहीं जौहरी के गधे की पीठ पर हीरे जवाहर और सोने के गहने लदे हुए थे।

जौहरी के गधे को इस बात का घमंड था कि उसकी पीठ पर हीरे जवाहरात और गहनें लदे हैं। वह लोहे के व्यापारी के गधे को नीचा समझ रहा था और अपने घमंड में बार बार उसका अपमान कर रहा था।

“क्या किस्मत है तुम्हारी, जो लोहे की छड़ लादे हुए हो। किस्मत हो, तो मेरे जैसे!” जौहरी का गधा लोहे के व्यापारी के गधे को नीचा दिखाकर बोला।

“जैसी भी किस्मत है मेरी, मैं अपने जीवन से संतुष्ट हूं।” लोहे के व्यापारी के गधे ने उत्तर दिया।

जौहरी का गधा हंसने लगा।

कुछ देर में अंधेरा घिर गया। दोनों व्यापारी अपने गधों के साथ एक पेड़ के नीचे सुस्ताने के लिए रुक गए। तभी डाकुओं ने उन पर हमला कर दिया। दोनों व्यापारी अपने गधों को लेकर भाग गए।

डाकुओं के सामने दो गधे रह गए। उन्होंने देखा कि एक गधे पर लोहे की छड़ लदी है और एक पर हीरे जवाहरात और गहनें। उन्होंने लोहे के व्यापारी के गधे को भगा दिया, क्योंकि उसके पास ज्यादा कीमती सामान नहीं था। जौहरी के गधे को उन्होंने पकड़कर रख लिया और उसकी पीठ पर लदे थैले से सामान निकालने लगा। घमंडी गधा विरोध करने लगा, तब डाकुओं ने लठ्ठ से उसकी खूब मरम्मत की। अब जौहरी के गधे को अपनी किस्मत खराब लगने लगी। उसे अपने घमंड का फल मिल चुका था।

सीख 

हमेशा विनम्र रहना चाहिए और कभी किसी को नीचा नहीं दिखाना चाहिए।

मेंढक और बैल की कहानी 

जंगल में नदी किनारे एक मेंढक रहता था। उसके साथ उसके तीन बच्चे भी रहते थे। उनकी दुनिया जंगल और नदी ही थी, जहां वे आराम से जीवन गुजार रहे थे। वे अपने आरामदायक जीवन से बहुत खुश थे। 

मेंढक हट्टा कट्टा और तंदुरुस्त था। उसके बच्चों के लिए वही दुनिया का सबसे बड़ा जीव था। वह हर दिन अपने बच्चों को अपनी बहादुरी के किस्से सुनाता, जिसे सुनकर उसके बच्चे बहुत खुश होते और उसकी बहुत प्रशंसा करते। अपनी प्रशंसा सुनकर मेंढक घमंड से फूला नहीं समाता।

एक दिन मेंढक के तीनों बच्चे जंगल के पास एक गांव में गए। वहां उनकी नजर एक खेत में चरते हुए बैल पर पड़ी। बैल को देखकर मेंढक के बच्चे आश्चर्यचकित थे क्योंकि उन्होंने इतना विशाल जीव पहले कभी नहीं देखा था। वे उससे डर भी रहे थे और उसके विशाल शरीर को देखे भी जा रहे थे। 

कभी बैल ने हुंकार भरी और मेंढक के बच्चे डर के मारे भागते हुए अपने घर आ गए। मेंढक ने जब बच्चों को डरा हुआ देखा, तो उसका कारण पूछा। बच्चों ने पूरे विस्तार से उन्हें बैल के बारे में बताया कि उस जीव का शरीर बहुत बड़ा था उसके चार पैर, एक लंबी पूंछ और दो नुकीले सींग थे। 

यह सुनकर मेंढक ने पूछा, “क्या वह मुझसे भी बड़ा था?”

मेंढक के तीनों बच्चों ने उत्तर दिया, “हां वह बहुत बड़ा था। हमें लगता है वह दुनिया का सबसे बड़ा जीव था। आप उसके सामने कुछ भी नहीं।”

यह सुनकर मेंढक के अहंकार को ठेस पहुंची। उसने अपना शरीर फुला लिया और पूछा, “क्या वह इतना बड़ा था?”

“नहीं, वह इससे बहुत बड़ा था।”

मेंढक ने गहरी सांस भरी और अपने शरीर में और हवा भर कर उसे फुला लिया। फिर उसने पूछा, ” क्या वह इससे भी बड़ा था?”

मेंढक के बच्चों ने उत्तर दिया, “हां, इससे बहुत बड़ा। आप तो बहुत छोटे हो।”

मेंढक ने नदी के बाहर कभी कदम नहीं रखा था। न उसे अपने शरीर के आकार का पता था, न दूसरे जीवो के शरीर के आकार का। वह खुद को दुनिया का सबसे बड़ा जीव समझता था। अपने तीनों बच्चों की बात सुनकर उसे बहुत बुरा लगा। उसने जिद पकड़ ली कि वह अपने बच्चों के सामने सबसे बड़ा जीव बनकर ही रहेगा।

उसने जोर लगाकर हवा खींची और उसका शरीर गेंद की तरफ फूल गया। उसके बाद भी वह नहीं रुका। वह अपने शरीर में हवा भरता गया। उसने अपने शरीर में इतनी हवा भर ली कि उसका शरीर उसे संभाल नहीं पाया और फट गया। अपने अहंकार के कारण मेंढक की जान निकल गई।

सीख 

1. अहंकार नहीं करना चाहिए। अहंकार विनाश की ओर ले जाता है।

2. कभी दूसरों से तुलना नहीं करनी चाहिए।

शेर और चूहा की कहानी 

एक जंगल में एक बलशाली शेर रहता था. जंगल के सारे जानवरों ने उसे अपना राजा माना हुआ था. शेर को अपने बल पर बड़ा घमंड था. वह अपने सामने अन्य जानवरों को बहुत तुच्छ समझता था और उन्हें हीन दृष्टि से देखता था. जंगल के सारे जानवर उससे डरते थे और उससे दूर भागते थे.

एक दिन वह जंगल में शिकार की तलाश में निकला और शिकार करने के बाद खा-पीकर नदी किनारे एक पेड़ के नीचे आराम करने लगा. वह मज़े से सो रहा था कि कहीं से एक शरारती चूहा वहाँ आ गया और खेलने लगा. खेलते-खेलते उसे पता ही नहीं चला कि कब वो शेर की पीठ पर चढ़ गया. अपनी मस्ती में वह शेर की पीठ इधर-उधर भागने लगा और उछलकूद मचाने लगा.

उसकी इस धमाचौकड़ी से शेर की नींद टूट गई. उसने आँखें खोली, तो चूहे को अपनी पीठ पर उछलते-कूदते और धमाचौकड़ी करते हुए देखा. ये देखकर उसका  गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया. उसने चूहे को अपने पंजे में जकड़ लिया और गरजते हुए बोला –

“पिद्दी से चूहे! तेरी ये हिम्मत कि तू जंगल के राजा के ऊपर चढ़कर उधम मचाये. तुझे अपनी जान की परवाह नहीं है. समझ ले आज तेरी मौत आई गई है. मरने के लिए तैयार हो जा.”

शेर के पंजों में जकड़ा चूहा डर के मारे थर-थर कांपने लगा. उसे अपनी मौत सामने नज़र आने लगी. जैसे ही शेर उसे अपने पंजों में मसलने को हुआ, वह  जान बचाने के लिए शेर से विनती करने लगा –

“शेर महाराज! मुझे क्षमा कर दीजिये. मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई कि मैंने आपकी नींद में खलल डाल दिया. आइंदा से ऐसी भूल कभी नहीं होगी. मुझ पर उपकार कीजिये और मुझे मत मारिये. अगर आप मेरी जान बख्श देंगे, तो मैं जीवन भर आपका ये उपकार नहीं भूलूंगा और समय आने पर आपके इस उपकार का मोल अवश्य चुकाऊंगा.”

चूहे की बात सुनकर शेर हँसने लगा और उसे हीन दृष्टि से देखते हुए बोला, “तू अदना सा चूहा, भला मेरे लिए क्या कर पायेगा? जानता नहीं, मैं जंगल का राजा हूँ. मुझ सा बलशाली इस जंगल में कोई नहीं. जा फिर भी दया कर मैं तुझे छोड़ देता हूँ. लेकिन आइंदा से मेरे साथ ऐसी गुस्ताखी कभी मत करना. चल भाग यहाँ से!”

इस तरह दया करके शेर ने चूहे को छोड़ दिया. चूहा शेर का धन्यवाद कर वहाँ से चला गया. समय बीतता गया. शेर तो चूहे को भूल गया, लेकिन चूहा शेर का उपकार नहीं भूला.

एक दिन शेर जंगल में शिकार की तलाश में निकला. उन दिनों शिकारियों ने जंगल में जगह-जगह जाल बिछाये हुए थे. शेर घूमते-घूमते शिकारी के बिछाये जाल में फंस गया. वह जाल से निकलने का प्रयास करने लगा, लेकिन वह जितना प्रयास करता, उतना ही जाल में उलझता जाता. अंत में वह सहायता के लिए जोर-जोर से दहाड़ने लगा.   

उसी समय वही चूहा वहाँ से गुज़र रहा था. उसने शेर की दहाड़ सुनी, तो उसके पास पहुँचा. वहाँ उसने देखा कि शेर जाल में बुरी तरह फंसा हुआ है. उसे शेर का उपकार चुकाने का अवसर मिल गया था. बिना देर किये वह अपने नुकीले दांतों से शिकारी के जाल को काटने लगा. कुछ ही देर में उसने जाल काट दिया और शेर को आज़ाद कर दिया.

जान बचने के लिए शेर चूहे का धन्यवाद करने लगा, तब चूहा बोला, “महाराज! अपने मुझे पहचाना नहीं. मैं वही चूहा हूँ, जिस पर एक दिन आपने उपकार किया था.”

शेर को गलती समझ आई कि उसने चूहे की शारीरिक बनावट देखकर उसे कितना कम आंका था. लेकिन आज वह अदना सा चूहा नहीं होता, तो वह शिकारी द्वारा पकड़ लिया जाता. उसने उसी समय निर्णय किया कि अब वह कभी छोटे-बड़े का भेदभाव नहीं करेगा. उस दिन से शेर बदल गया और सबसे मिल-जुलकर रहने लगा.

सीख

  • उपकार कभी व्यर्थ नहीं जाता, उसका मोल अवश्य किसी न किसी रूप में अवश्य प्राप्त होता है.
  • किसी भी प्राणी की काबिलियत उसके बाहरी स्वरुप से नहीं आंकनी चाहिए.
  • कभी छोटे-बड़े का भेदभाव नहीं करना चाहिए.

ईमानदार लकड़हारा और देवदूत की कहानी

एक गांव में एक लकड़हारा रहता था। वह लकड़ियां काटकर अपने परिवार का गुजारा करता था। रोज सुबह वह कुल्हाड़ी लेकर जंगल में निकल जाता, वहां लकड़ियां काटता और उसे बाजार में बेचकर पैसे कमाता। उसकी आमदनी अधिक नहीं थी। किसी तरफ उसके घर का गुजारा चल रहा था।

एक दिन वह रोज की तरह जंगल गया। नदी किनारे उसे एक सूखा पेड़ दिखाई दिया और वह अपनी कुल्हाड़ी से पेड़ की डालियां काटने लगा। उसने पेड़ की एक मोटी डाली पर कुल्हाड़ी से जोरदार प्रहार किया, तो उसकी कुल्हाड़ी छिटक कर नदी के पानी में जा गिरी। 

लकड़हारा नदी के पास गया और झांक कर देखने लगा। उसकी कुल्हाड़ी नदी की गहराई में जा चुकी थी। उसे निकाल पाना अब लकड़हारे के लिए संभव नहीं था।

लकड़हारे उदास हो गया। उसके पास एक ही कुल्हाड़ी थी और वही उसके जीविका का साधन थी। वह परेशान था कि अब वह कैसे लकड़ियां काटेगा और कैसे अपने परिवार की गुजर-बसर करेगा।

वह भगवान से प्रार्थना करने लगा, “भगवान मेरी कुल्हाड़ी मुझे लौटा दीजिए।”

उसकी प्रार्थना सुनकर नदी से एक देवदूत प्रकट हुए और उस उन्होंने लकड़हारे से पूछा, “वत्स! क्या बात है, तुम क्यों दुखी हो?”

लकड़हारे ने अपने कुल्हाड़ी नदी में गिरने की बात देवदूत को बताई और प्रार्थना की कि उसकी कुल्हाड़ी वापस लौटा दें।

देवदूत ने पानी में डुबकी लगाई और जब वापस प्रकट हुए, तो उनके हाथ में चांदी की कुल्हाड़ी थी। उन्होंने लकड़हारे से पूछा, “क्या यही है तुम्हारी कुल्हाड़ी?”

लकड़हारे ने उत्तर दिया, ” नहीं देव, यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।”

देवदूत ने फिर से पानी में डुबकी मारी और इस बार सोने की कुल्हाड़ी के साथ बाहर आए। उन्होंने लकड़हारे से पूछा, “क्या यही है तुम्हारी कुल्हाड़ी?”

लकड़हारा बोला, “नहीं देव, ये मेरी कुल्हाड़ी नहीं है। ये यह तो सोने की है। मेरी कुल्हाड़ी तो लोहे की थी, जिससे मैं लकड़ियां काट सकता था।?”

देवदूर ने फिर से पानी में अंतर्ध्यान हो गए और इस बार वह लोहे की कुल्हाड़ी के साथ प्रकट हुए। वह कुल्हाड़ी देखते ही लकड़हारा चिल्लाया, “यही मेरी कुल्हाड़ी है। यही मेरी कुल्हाड़ी है।”

देवदूत लकड़हारे की ईमानदारी देखकर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा, “वत्स! तुम्हारी इमानदारी से मैं अति प्रसन्न हूं। तुम चाहते तो सोने और चांदी की कुल्हाड़ी ले सकते थे। लेकिन तुमने ईमानदारी दिखाई। इसलिए मैं तुम्हें तीनों कुल्हाड़ी देता हूं।”

देवदूत ने सोने चांदी और लोहे तीनों की कुल्हाड़ी लकड़हारे को दे दी। लकड़हारा खुशी-खुशी अपने घर लौट आया। सोने और चांदी की कुल्हाड़ी बेच कर उसने अच्छा धन कमाया और सुखी सुखी रहने लगा।

सीख 

हमेशा ईमानदार रहना चाहिए।

गधा और भेड़िया की कहानी

एक दिन की बात है। एक भूखा भेड़िया शिकार की तलाश में जंगल में निकला। घूमते घूमते वह एक हरे-भरे मैदान में पहुंचा। वहां उसने देखा कि एक मोटा ताजा गधा घास चर रहा है। गधे को देखकर वह बहुत खुश हुआ और सोचने लगा – ‘ आज के मेरे भोजन का प्रबंध हो गया। ‘

वह मौके की तलाश में एक पेड़ के पीछे छुप कर बैठ गया। घास चरते गधे ने भेड़िये को देख लिया था। उसे अंदाजा हो गया था कि भेड़िया उसका शिकार करने की फिराक में है। वह जल्द से जल्द वहां से भागने के बारे में सोचने लगा। लेकिन तभी उसने देखा कि भेड़िया उसकी तरफ आ रहा है।

वो भाग पाता, उसके पहले ही भेड़िया उसके सामने आकर खड़ा हो गया। भेड़िये को सामने देखकर गधे को एक युक्ति सूझी और वह लंगड़ा कर चलने लगा। उसे लंगड़ा पर चलता देख भेड़िये ने पूछा, ” क्यों गधे तुम ऐसे लगड़ाकर क्यों चल रहे हो?

“मेरे पैर में कांटा चुभ गया है? भेड़िये भाई क्या तुम मेरे पैर से कांटा निकाल दोगे।” गधे ने कहा।

“मैं क्यों तुम्हारे प्यार से काटा निकालूं।” भेड़िये ने कहा।

“भेड़िये भाई मुझे पता है कि तुम मुझे खाने वाले हो। लेकिन अगर मेरे पैर में कहता कांटा चुभा रहा, तो वह तुम्हारे गले में अटक सकता है। इसलिए बेहतर होगा कि तुम यह कांटा मेरे पैर से निकाल दो।”

गधे की यह बात भेड़िये को सही लगी और वह गधे के पैर से कांटा निकालने को तैयार हो गया।

उसने गधे को पैर उठाने को कहा और उसके नजदीक जाकर कांटा ढूंढने लगा। जैसे ही भेड़िया गधे के पैर के पास गया, गधे ने जोरदार दुलत्ती भेड़िये को मारी, जिससे भेड़िया दूर फिंका गया। मौका मिलते ही गधा तेजी से वहां से भाग गया।

दूर पड़ा भेड़िया सोचने लगा – “मेरी मति मारी गई थी, जो मैं वह काम करने चला था, जो मेरा नहीं है। कांटा निकालना वैद्य का काम है। मैं वह काम करने गया और अपने शिकार से हाथ धो बैठा। ‘

वहीं गधा बुद्धिमानी से अपनी जान बचाकर सुरक्षित जगह पर पहुंच गया था और चैन की बंशी बजा रहा था।

सीख 

1. मुसीबत के समय बुद्धि से काम लेना चाहिए।

2. जो काम आपका नहीं है, उसमें व्यर्थ में हाथ नहीं डालना चाहिए।

सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की कहानी

बहुत समय पहले की बात है. एक गाँव में एक निर्धन किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था. उसका छोटा सा खेत था, जिसमें वह अपनी पत्नी के साथ दिन भर काम करता था. मगर खेती से उसे इतनी भी आमदनी नहीं हो पाती थी कि वह दो वक़्त का भोजन भी जुटा सके. उस पर क़र्ज़ का बोझ बढ़ता जा रहा था.

एक दिन उसकी मुलाक़ात अपने पुराने मित्र से हुई. दोनों अपने-अपने जीवन की बातें करने लगे. मित्र ने इन वर्षों में अच्छा ख़ासा धन अर्जित कर लिया था. उसकी रईसी देख किसान ने पूछा, “मित्र, तुमने जीवन में बहुत उन्नति कर ली है. मेरी स्थिति तो दिन पर दिन बिगड़ती जा रही है. तुम ही सुझाओ कि मैं क्या करूं.”

मित्र ने किसान से कहा, “मैंने मुर्गियों के अंडे बेचने से शुरुवात की और आज एक पोल्ट्री फॉर्म मालिक हूँ. तुम भी कुछ मुर्गियों के साथ यह धंधा शुरू कर सकते हो.”

मित्र ने किसान को कुछ पैसे उधार दिए, जिससे किसान ने कुछ मुर्गियाँ खरीद ली. मुर्गियाँ लेकर जब वह घर पहुँचा, तो उसकी पत्नी चकित हुई. तब किसान ने अपने मित्र के धनी होने का राज़ बताते हुए कहा, “अब से हम भी मुर्गियों के अंडे बेचेंगे. हो सकता है, हमारी किस्मत भी खुल जाए.”

पत्नी ख़ुश हो गई. दोनों ने मिलकर आँगन में मुर्गियों के रहने के लिए दड़बा बनाया और उसमें सारी मुर्गियाँ रख दी. रात को भोजन कर वे सो गए. सुबह उठकर जब उन्होंने मुर्गियों के दड़बे में झांका, तो हैरान रह गए. वहाँ कई अंडों के बीच सोने का एक अंडा पड़ा हुआ था.

दोनों वह देखकर बहुत खुश हुए. किसान सोने के अंडे को जौहरी की दुकान में अच्छे पैसों में बेच आया. अगले दिन फिर उन्हें दड़बे में सोने का अंडा मिला. उसके बाद से सिलसिला सा चल पड़ा. किसान को रोज़ सोने के अंडे मिलने लगे. वह उन अंडों को अच्छी कीमत में बेच आता.

धीरे-धीरे किसान की आर्थिक स्थिति सुधरती गई और वह अपने गाँव के धनी लोगों में गिना जाने लगा. अब किसान और उसकी पत्नी दोनों अपने जीवन से ख़ुश थे.

एक दिन अचनाक किसान के दिमाग में यह विचार आया कि सोने का अंडा देने वाली मुर्गी से रोज़ एक अंडा पाने के बजाय यदि उसका पेट चीर कर एक साथ सारे अंडे बाहर निकाल लिए जायें, तो उन्हें बेचकर एक बार ही में लखपति बना सकता है.

उसने अपनी योजना पत्नी को बताई, तो वह भी उसकी बातों में आ गई. उस रात दोनों ने दड़बे की मुर्गियों पर नज़र रखी, ताकि सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की पहचान की जा सके. आखिर उन्हें पता चल ही गया कि सोने का अंडा देने वाली मुर्गी कौन सी है.

फिर उन्होंने देर नहीं की. किसान की पत्नी रसोई से बड़ा सा चाकू ले आई. किसान तब तक सोने का अंडा देने वाली मुर्गी को दड़बे से बाहर निकाल चुका था. पत्नी से चाकू लेकर उसने मुर्गी का पेट चीर दिया. मगर वे दोनों ये देखकर आश्चर्य चकित रह गये कि अंदर से वह मुर्गी अन्य मुर्गियों की तरह ही थी. उसके पेट में कोई सोने का अंडा नहीं था.

किसान और उसकी पत्नी पछताने लगे. एक बार में सारे सोने के अंडे पा लेने के लालच में वे रोज़ मिलने वाले एक सोने के अंडे से भी हाथ धो बैठे थे, क्योंकि सोने का अंडा देने वाली मुर्गी मर चुकी थी. इसलिए कहते हैं कि लालच बुरी बला है.

सीख 

लालच बुरी बला.

हाथी, भालू और मगरमच्छ की कहानी 

एक जंगल में हाथी रहता था, जो अपने दयालु स्वभाव के लिए जाना जाता था। वह हमेशा सबकी मदद करने के लिए तत्पर रहता था। उसके इस गुण के कारण जंगल के सभी जानवर उससे बहुत प्यार करते थे।

एक दिन हाथी नदी किनारे गया। वहां उसे एक मगरमच्छ पत्थर के नीचे दबा दिखाई पड़ा। वह दर्द से छटपटा रहा था।

हाथी ने उससे पूछा, “क्या हुआ मगरमच्छ भाई, तुम इस पत्थर के नीचे कैसे दब गए?”

मगरमच्छ दर्द से कराहते हुए बोला, “हाथी दादा, मैं खाना खाकर नदी किनारे आराम कर रहा था। तभी एक बड़ा पत्थर टूट कर मेरे ऊपर गिर गया और मैं इसके नीचे दब गया। मैं दर्द से मरा जा रहा हूं। मेरी मदद करो और इस पत्थर को हटा दो। मैं जिंदगी भर तुम्हारा आभारी रहूंगा।”

हाथी ने दयावश मगरमच्छ की मदद करने का फैसला किया। मगर उससे अंदाजा था कि मगरमच्छ उस पर हमला भी कर सकता है। इसलिए उसने मगरमच्छ से कहा, “मैं तुम्हारी मदद करने के लिए तैयार हूं मगरमच्छ भाई। लेकिन मुझसे वादा करो कि तुम मुझे कोई नुकसान नहीं पहुंचाओगे।”

मगरमच्छ ने हाथी से वादा किया कि वह उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा। मगरमच्छ के वादे से संतुष्ट होकर हाथी इसके पास गया और उसके ऊपर से पत्थर हटा दिया। पत्थर हटने के बाद मगरमच्छ ने वादे से पलटते हुए हाथी पर हमला कर दिया और अपने जबड़े से उसका पैर पकड़ लिया।

हाथी चीखने लगा, “तुमने मुझसे वादा किया था मगरमच्छ भाई और अब तुम धोखा कर रहे हो।”

“कैसा वादा? मुझे कोई वादा याद नहीं!” कहकर मगरमच्छ की और जोर से हाथी का पैर जकड़ लिया। हाथी तेज आवाज में चिंघाड़ने लगा।

पास ही से एक भालू गुजर रहा था। हाथी की चीख सुनकर नदी के पास पहुंचा। वहां का सारा माजरा देखकर उसने पूछा, “हाथी दादा क्यों चीख रहे हो?”

हाथी ने उसे सारी घटना सुना दी और मदद की गुहार लगाई। सारी बात सुनकर भालू बोला, “ऐसा हो ही नहीं सकता कि मगरमच्छ पत्थर के नीचे दब गया हो और जिंदा हो।”

मगरमच्छ ने कहा, “ऐसा हुआ था।”

“मैं नहीं मानता।” भालू ने कहा।

“मानो मेरी बात कि ऐसा ही था।” मगरमच्छ फिर से बोला।

तब भालू ने कहा, “मैं अपनी आंखों से देख लूंगा, तभी मानूंगा। क्या हुआ था, जरा मुझे वो नज़ारा तो दिखाना।”

तब मगरमच्छ ने हाथी से कहा, “ये भालू ऐसे नहीं मानेगा। ऐसा करो, तुम वो पत्थर मेरे ऊपर रख दो और फिर उसे हटा कर दिखाओ।” 

मगरमच्छ हाथी का पैर छोड़कर नदी के किनारे जाकर बैठ गया। हाथी ने अपने सूंड से बड़ा सा पत्थर उठाया और मगरमच्छ के ऊपर रख दिया।

तब मगरमच्छ भालू से बोला, “यह देख रहे हो। इसी तरह मैं इस पत्थर के नीचे दबा हुआ था और हाथी ने पत्थर हटाकर मुझे बचाया।”

“हाथी ने तुम्हारी मदद की थी और तुमने उस पर ही हमला कर दिया था। तुम इसी लायक हो कि इस पत्थर के नीचे ही दबे रहो।”

भालू ने हाथी को इशारा किया और वे दोनों वहां से चले गए। मगरमच्छ पत्थर के नीचे की दबा रह गया। अपनी करनी का फल उसे मिल चुका था।

सीख 

1. जो आपकी सहायता करें, उसके प्रति सदा कृतज्ञता का भाव रखना चाहिए।

2. कभी किसी को धोखा नहीं देना चाहिए।

3. मुसीबत के समय बुद्धि से काम लेना चाहिए।

मूर्ख गधा और मूर्तिकार की कहानी

एक गांव में एक मूर्तिकार रहता था। मूर्तियां बनाने में वह निपुण था। वह बड़ा परिश्रमी भी था और पूरे लगन से मूर्तियां बनाया करता था। उसकी बनाई मूर्तियां बोलती सी जान पड़ती थी। धीरे धीरे उसकी प्रसिद्धि पूरे राज्य में फैल रही थी।

एक दिन राजा के कानों में मूर्तिकार की प्रसिद्धि पहुंची। उसने उसे अपने राजमहल में बुलवाया। मूर्तिकार राजा के सामने उपस्थित हुआ। राजा ने उसे अपने राजमहल के मंदिर के लिए देवता की मूर्ति बनाने की आज्ञा दी और इसके लिए सात दिन का समय दिया।

घर आकर मूर्तिकार मूर्ति बनाने में जुट गया। सात दिन के कड़े परिश्रम के बाद उसने देवता की मूर्ति तैयार कर ली। जब मूर्ति तैयार हो गई, तो वह मूर्ति को गधे पर रखकर राजा को देने के लिए राजमहल जाने लगा। 

रास्ते में जो भी देवता की मूर्ति को देखता, श्रद्धावश झुककर प्रणाम करता। ये देख मूर्ख गधा सोचता कि गांव वाले उसे झुककर प्रणाम कर रहे हैं। उसमें अकड़ आ गई और वह अपने आपको देवता तुल्य समझने लगा। अब उसे आगे बढ़ने में कोई रुचि नहीं थी। वह इस बात से खुश था कि आते जाते लोग उसे प्रणाम कर रहे हैं। 

मूर्तिकार के कहने पर भी गधा बहुत धीरे-धीरे चल रहा था। एक जगह आकर तो वह अड़ गया। मूर्तिकार ने कई बार उसे आगे बढ़ने के लिए कहा, मगर गधा टस से मस नहीं हुआ। गधे का अड़ियल रवैया देखकर मूर्तिकार को क्रोध आ गया। उसने लठ्ठ से गधे की जोरदार पिटाई की। तब गधे के अक्ल ठिकाने आई और वह मुंह लटकाकर सारे रास्ते मार खाता हुआ राजमहल पहुंचा।

सीख 

समझदार के लिए एक इशारा ही बहुत है, जबकि मूर्ख अपनी मूर्खतावश सदा क्रोध का पात्र बनते हैं।

दो दोस्तों की कहानी

एक बार की बात है। दो बाइकर दोस्तों ने घूमने जाने का प्लान बनाया और अपनी अपनी बाइक लेकर घूमने के लिए निकल गए।

लंबा सफ़र तय करने के बाद वे एक समुद्र के किनारे पहुंचे। समुद्र के किनारे टहलते हुए किसी बात पर एक दोस्त को गुस्सा आ गया और उसने दूसरे दोस्त को थप्पड़ मार दिया। तब दूसरे दोस्त ने रेत पर लिखा – ‘आज मेरे दोस्त ने मुझे थप्पड़ मारा।’

वहां से फिर वे दोनों अपनी अपनी बाइक लेकर आगे के सफ़र पर निकल गए। लंबा सफ़र तय करने के बाद वे एक पहाड़ी इलाके में पहुंचे। अचानक वहां के संकरे रास्ते से फिसलकर दूसरे दोस्त की बाइक खाई में गिरने लगी। तब पहले दोस्त ने उसकी जान बचाई। 

उस समय दूसरे दोस्त ने पत्थर से खुरचकर एक चट्टान पर लिखा – ‘आज मेरे दोस्त ने मेरी जान बचाई।’

पहला दोस्त हैरान हुआ। उसने दूसरे दोस्त से पूछा, “जब मैंने तुम्हें थप्पड़ मारा, तब तुमने रेत पर लिखा और जब मैंने तुम्हें बचाया, तब तुमने चट्टान पर लिखा। ऐसा क्यों?”

दूसरा दोस्त बोला, “ऐसा इसलिए, क्योंकि मैं बुरी याद जल्द से जल्द अपने दिल से मिटा देना चाहता हूं। लेकिन अच्छी याद हमेशा अपने दिल में संजोकर रखना चाहता हूं।”

पहले दोस्त ने दूसरे दोस्त को गले से लगा लिया।

सीख 

बुरी यादें भूल जाइए। अच्छी यादें याद रखिए और किसी का एहसान कभी मत भूलिए।

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