भारत की एतिहासिक धरोहर शनिवार वाड़ा (Shaniwar Wada) किला पुणे, महाराष्ट्र का एक प्रमुख पर्यटक स्थल है. बाजीराव प्रथम द्वारा निर्मित यह किला बाजीराव द्वारा काशीबाई को दिए धोखे और बाजीराव-मस्तानी की अधूरी प्रेमगाथा के साथ ही पेशवाओं की उन्नति से लेकर पतन की कहानी खुद में संजोये हुए है. यह पुणे के प्रमुख पर्यटक स्थलों में गिना जाता है.
18 वीं शताब्दी में मराठा पेशवाओं के उदयकाल में शनिवार वाड़ा किला भारतीय राजनीति का प्रमुख केंद्र हुआ करता था. लेकिन दुर्भाग्यवश यह बड़े ही रहस्यमयी तरीके से आग की चपेट में आकर नष्ट हुआ. आज यह अवशेष के रूप शेष है.
शनिवार वाड़ा किले के साथ एक काला अध्याय भी जुड़ा हुआ है. इस किले में सत्ता में लोभ में मराठाओं के पाँचवें पेशवा 16 वर्ष के नारायणराव की निर्मम हत्या करवा दी गई थी. कहा जाता है कि उनकी आत्मा इस किले में भटकती है और अंतिम घड़ी में उनके द्वारा ली गई चीखें आज भी इस किले की चारदीवारों में गूंजती है. यह किला भारत के सबसे रहस्यमयी/डरावनी जगहों (Top Most Haunted Places In India) में शामिल है.
Shaniwar Wada Information In Hindi
शनिवार वाड़ा किले का निर्माण (Shaniwar Wada Fort Constrution)
शनिवार वाड़ा का निर्माण पेशवा बाजीराव प्रथम द्वारा करवाया गया था, जो मराठा शासक छत्रपति साहू के पेशवा/प्रधान थे. इसकी नींव 10 जनवरी 1730 को शनिवार के दिन रखी गई थी. शनिवार के दिन नींव रखे जाने के कारण इस किले का नाम ‘शनिवार वाड़ा’ (Shaniwar Wada) पड़ा.
इस सात मंजिला किले के निर्माण की जिम्मेदारी राजस्थान के ठेकेदारों को सौंपी गई, जो ‘कुमावत क्षत्रिय’ (Kumawat Kshatriya) कहलाते थे. इसे पूर्णतः पत्थरों से निर्मित किये जाने की योजना थी. किंतु सतारा की प्रजा द्वारा वहाँ के राजा साहू से शिकायत की गई कि पत्थरों से इमारत के निर्माण का अधिकार केवल राजाओं का है. जिसके बाद राजा साहू द्वारा पेशवाओं को पत्र लिखकर अपनी आपत्ति जताई गई और शनिवार वाड़े का निर्माण पत्थरों के बजाय ईंट से करने को कहा. उस समय तक किले का आधार तैयार हो चुका था. राजा साहू की बात मानकर पेशवाओं ने किले की शेष मंजिलों का निर्माण ईंटों से करवाया.
किले के निर्माण हेतु प्रयुक्त टीक की लकड़ी जुन्नार के जंगलों (जुन्नार Forset) से, पत्थर चिचवाड़ की खदानों (Chinchwad Mines) से और चूना जेजुरी खदानों (jejuri mines) से लाया गया था.
625 आर्क में निर्मित इस किले के निर्माण में कुल 1,61,100 रुपये खर्च हुए. भव्य किले के सफ़लता पूर्वक निर्माण के उपरांत प्रसन्न होकर पेशवाओं ने राजस्थान के ठेकेदारों को ‘नाईक’ की उपाधि से अलंकृत किया. 22 जनवरी 1732 को शनिवार के दिन ही किले का उद्घाटन संपन्न हुआ.
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शनिवार वाड़ा किले की संरचना (Shaniwar Wada Fort Architechture)
शनिवार वाड़ा किले में प्रवेश हेतु 5 दरवाजे बने हुए हैं, जिन्हें विभिन्न नाम दिए गए है.
- दिल्ली दरवाज़ा (Dilli Darwaza or Delhi Gate) – यह किले का मुख्य द्वार है. यह उत्तर दिशा में दिल्ली की ओर खुलता है. इस कारण इसे ‘दिल्ली दरवाज़ा’ भी कहा जाता है. उत्तर में दिल्ली की ओर मुख कर यह द्वार बनाने के पीछे पेशवा बाजीराव की मुग़ल साम्राज्य की समाप्ति की महत्वाकांक्षा भी मानी जाती है. यह दरवाज़ा काफ़ी ऊँचा और चौड़ा है. इतना कि पालकी सहित हाथी को यहाँ से निकाला जा सकता है. इस दरवाज़े पर दोनों पलड़ों पर 72 नुकीले कीलें लगी हुई हैं, जिनकी लंबाई 12 इंच है. यह शत्रु के हाथियों के हमले से रक्षा के लिए दरवाज़े पर लगाई गई हैं. दरवाज़े के दाहिने पलड़े पर सैनिकों के आने-जाने के लिए एक छोटा द्वार बना हुआ है. ये दरवाज़ा काफ़ी छोटा है, जिससे कोई सेना आसानी और जल्दी से इसमें प्रवेश नहीं कर सकती. ऐसा सुरक्षा की दृष्टि से किया गया था.
- मस्तानी दरवाज़ा या अलीबहादुर दरवाज़ा (Mastani Darwaza or Mastani Gate or Alibahadur Gate) – यह दरवाज़ा उत्तर दिशा में खुलता है. पेशवा बाजीराव की दूसरी पत्नि मस्तानी बाहर जाते समय इसी दरवाज़े का इस्तेमाल करती थी. इस कारण इस दरवाज़े का नाम ‘मस्तानी दरवाज़ा’ पड़ा. इसे ‘अलीबहादुर दरवाज़ा’ का नाम भी दिया गया है.
- खिड़की दरवाज़ा (Khidki Darwaza or Window Gate) – यह दरवाज़ा पूर्व दिशा में खुलता है. खिड़की बनी होने के कारण इसका नाम ‘खिड़की दरवाज़ा’ पड़ा.
- गणेश दरवाज़ा (Ganesh Darwaza or Ganesh Gate) – यह दरवाज़ा दक्षिण-पूर्व दिशा में खुलता है. किले परिसर में बने गणेश महल के नज़दीक होने के कारण इसका नाम ‘गणेश दरवाज़ा’ पड़ा. इस दरवाज़े का उपयोग महिलायें ‘क़स्बा गणपति मंदिर’ (Kasba Ganpati Temple) में दर्शन के लिए आते समय करती थी.
- जम्भूल दरवाज़ा या नारायण दरवाज़ा (Zambhul Darwaza or narayan Darwaza और Narayan Gate) – जम्भूल दरवाज़ा दक्षिण दिशा में खुलता है. इसका उपयोग दासियाँ किले में आने-जाने के लिए किया करती थी. इस दरवाज़े का दूसरा नाम ‘नारायणराव दरवाज़ा’ नारायण राव की मृत्यु के उपरांत दिया गया. इसी दरवाज़े से उनका शव किले के बाहर ले जाया गया था.
शनिवार वाड़ा की मुख्य इमारत के निर्माण के बाद समय-समय पर किले में कई अन्य इमारतों, जलाशय और लोटस फाउंटेन का निर्माण करवाया गया.
किले की मुख्य इमारत 7 मंजिला थी, जिसकी सबसे ऊंची मंजिल पर पेशवाओं का निवास था, जिसे मेघादम्बरी (Meghadambari) कहा जाता था. कहा जाता है कि यहाँ से देखने पर 17 किलोमीटर दूर आनंदी में स्थित संत ज्ञानेश्वर मंदिर के शिखर दिखाई पड़ता था. 1828 में किले में लगी आग में यह इमारत भी नहीं बची. वर्तमान में इसका पत्थर से निर्मित आधार शेष है. इसके अतिरिक्त कुछ छोटी इमारत शेष हैं.
किले की अन्य प्रमुख इमारतों में 3 इमारतें ‘थोरल्या रायांचा दीवानखाना’ (Thorlya Rayancha Diwankhana), ‘नाचचा दीवानखाना’ (Naachacha Diwankhana) और ‘जूना अरसा महल’ (Old Mirror Hall) सम्मिलित थी. ये सभी इमारतें 1828 में किले में लगी आग में नष्ट हो गई. आज उनके अवशेष मात्र देखे जा सकते हैं.
लोटस फाउंटेन (Lotus Fountain) – शनिवार वाड़ा का मुख्य आकर्षण कमल के आकार का फाउंटेन है, जो ‘लोटस फाउंटेन’ या ‘हज़ारी कारंजे’ (Hazari Karanje) के नाम से जाना जाता है. इस फाउंटेन में कमल के फूल का आकार लिए हुए 16 पंखुड़ियाँ बनी हुई है, जो कलात्मकता का बेजोड़ नमूना है. एक समय में यहाँ 100 नर्तक नृत्य करते थे. इसकी एक कोने में संगमरमर की बनी गणपति की प्रतिमा स्थापित थी. फाउंटेन के साथ ही यहाँ फूलों का सुंदर बगीचा था.
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शनिवार वाड़ा किले का इतिहास और रहस्य (Shaniwar Wada Fort History & Mystery In Hindi)
पेशवा बाजीराव प्रथम के दो पुत्र थे – बालाजी बाजीराव, जो नाना साहेब के नाम से भी जाने जाते हैं और रघुनाथ राव. बाजीराव प्रथम की मृत्यु के उपरांत नाना साहेब पेशवा बने.
पेशवा नाना साहेब के तीन पुत्र थे –
१. विशव राव
२. महादेव राव
३. नारायण राव
पानीपत की तीसरे युद्ध में नाना साहेब के प्रथम पुत्र विशव राव की मृत्यु हो गई. जब नाना साहेब पेशवा की मृत्यु हुई, तो उनके द्वितीय पुत्र महादेव राव गद्दी पर बैठे. लेकिन 27 वर्ष की आयु में ही उनकी मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु के बाद पेशवा नाना साहेब के तीसरे पुत्र नारायण राव को गद्दी पर बैठाया गया. जब नारायण राव गद्दी पर बैठे, तब उनकी उम्र मात्र 17 वर्ष थी.
17 वर्ष के बालक नारायण राव का गद्दी पर बैठना उनके काका (चाचा) रघुनाथ राव और काकी (चाची) आनंदी बाई को खल रहा था. रघुनाथ राव स्वयं पेशवा बनना चाहते थे. वह पहले पेशवा महादेवराव की हत्या का प्रयास कर चुके थे, जिससे नारायणराव वाकिफ थे. इस कारण वे भी अपने काका को पसंद नहीं करते थे और हमेशा शक की दृष्टि से देखते थे.
दोनों के रिश्ते तब और बिगड़ गए जब सलाहकारों के भड़काने पर पेशवा नारायणराव ने रघुनाथ राव को अपने घर पर नज़रबंद कर दिया. उनकी काकी आनंदी बाई इस बात पर उनसे बहुत नाराज़ हो गई.
नज़रबंद होने के बाद रघुनाथ राव ने अपने बचाव के लिए शिकारी कबीलियाई गार्दी (Gardi) के मुखिया सुमेंद्र सिंह गार्दी को एक पत्र भेजा, जिसमें लिखा था – ‘नारायणराव ला धारा’ जिसका अर्थ था – ‘नारायण राव को कैद कर लो’. ये पत्र पहले रघुनाथ राव की पत्नी आनंदी बाई के पास पहुँचा और मौका देखते हुए उसने घिनौनी चाल चलते हुए उस पत्र के शब्द बदल दिए और ‘नारायणराव ला धारा’ को ‘नारायणराव ला मारा’ कर दिया, जिसका अर्थ था –‘नारायणराव को मारो’.
यह पत्र मिलते ही सुमेंद्र सिंह गार्दी के लोगों ने शानिवार वाड़ा किले पर हमला कर दिया. जब वे सारी बाधा पार कर पेशवा नारायणराव के कक्ष में पहुँचे, तो नारायण राव उन्हें देखकर अपने काका के कक्ष की ओर ये कहते हुए भागा – ‘काका माला वाचवा’ अर्थात् ‘चाचा मुझे बचाओ’. किंतु उसके अपने काका तक पहुँचने के पहले ही गार्दियों ने उसे पकड़कर मौत के घाट उतार लिया.
इस घटना के संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है. कुछ इतिहासकार उपरोक्त घटना को मानते है. कईयों का कहना है कि नारायणराव अपने काका के सामने ही स्वयं को बचाने के लिए याचना करता रहा, किंतु रघुनाथराव ने कुछ नहीं किया और गार्दियों ने उसे मार कर उसकी लाश के टुकड़े-टुकड़े कर नदी में बहा दिये.
27 फ़रवरी 1823 को शनिवार वाड़ा किले में आग लग गई. सात दिनों तक इस आग में काबू नहीं पाया जा सका. इस आग में किले का अधिकांश हिस्सा जल गया. आज इसके अवशेष शेष हैं.
शनिवार वाड़ा की भुतिया कहानी (Shaniwar Wada Fort Haunted Story In Hindi)
शनिवार वाड़ा के संबंध में कई रहस्यमयी और भुतिया कहानियाँ प्रचलित है. लोगों का कहना है कि आज भी शनिवार वाड़ा में नारायणराव की आत्मा भटकती है और उसके द्वारा कहे गए अंतिम शब्द ‘काका माला वाचवा’ आज भी किले में सुनाई पड़ते है. इस कारण इस किले को भुतहा (haunted) माना जाता है.
शनिवार वाड़ा किला कैसे पहुँचे (How To Reach Shaniwar Wada Fort)
पुणे सभी मुख्य शहरों से जैसे मुंबई, दिल्ली, जयपुर, बैंगलोर आदि से जुड़ा हुआ है. ट्रेन या फ्लाइट के माध्यम से यहाँ पहुँचा जा सकता है. शनिवार वाड़ा शहर के बीचों-बीच अवस्थित है. पुणे पहुँचकर किसी भी लोकल ट्रांसपोर्ट जैसे बस, ऑटो या टैक्सी से यहाँ जा सकते हैं. PMC (Pune Municipal Corporation) के द्वारा चलाई जाने वाली पुणे दर्शन बस (Pune Darshan Bus) भी पुणे के अन्य पर्यटन स्थलों के साथ शनिवार वाड़ा भी कवर करती है.
शनिवार वाड़ा समय और एंट्री फीस (Shaniwar Wada Fort Timing and Entry Fees)
शनिवार वाडा सुबह आठ बजे से शाम साढ़े छ: बजे तक खुला रहता है. भारतीयों (Indian) के लिए प्रवेश शुल्क 5 रूपये प्रति व्यक्ति और विदेशियों (Foreigners) के लिए 125 रुपये प्रति व्यक्ति है. लाइट और साउंड शो के लिए अलग चार्जेज हैं.
शनिवार वाड़ा लाइट एंड साउंड शो (Shaniwar Wada Fort Light and Shound show)
शनिवार वाड़ा किले में प्रतिदिन शाम को लाइट एंड साउंड शो आयोजित होता है. 1.25 करोड़ के खर्च पर यहाँ इस शो का सेट-अप किया गया, ताकि लोगों को मराठाओं के समृद्ध इतिहास की जानकारी दी जा सके. प्रति शाम को 7:15 से 8:10 तक मराठी में एवं 8:15 से 9:10 तक अंग्रेजी भाषा में यह शो आयोजित होता है. इसके टिकट की कीमत 25/- प्रति व्यक्ति है, जो शाम 6:30 से लेकर 8:30 बजे तक ख़रीदे जा सकते हैं. इन टिकटों की advance booking नहीं होती. ये spot पर ही ख़रीदे जा सकते हैं.
शनिवार वाड़ा के पर्यटकों के लिए टिप्स (Tips For The Visitors Of Shaniwar Wada Fort)
- शनिवार घूमने के लिए काफ़ी चलना पड़ता है. इसलिए आरामदायक जूते पहनना ज़रूरी है.
- जुलाई से लेकर अप्रैल तक का समय मौसम के हिसाब से शनिवार वाडा विजिट करने के लिए बेस्ट है.
- खाने-पीने की कोई व्यवस्था किले के भीतर नहीं है. इसलिए अपने साथ खाने-पीने का सामान लेकर चलें.
- यह की ऑथोरिटी किले की साफ़-सफ़ाई को लेकर सख्त है. किले के परिसर में गंदगी फ़ैलाने पर जुर्माने का प्रावधान है.
FAQ (Frequenty Asked Questions)
शनिवार वाड़ा का निर्माण किसके द्वारा करवाया गया था?
शनिवार वाड़ा का निर्माण कब करवाया गया था?
शनिवार वाड़ा का नाम शनिवार वाड़ा क्यों रखा गया?
पुणे के शनिवार वाड़ा के पहले निवासी कौन थे?
पुणे के शनिवार वाड़ा के पहले निवासी पेशवा बाजीराव प्रथम थे.
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