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नैना देवी मंदिर (Naina Devi Temple), इस मंदिर में देवी के दर्शन से ठीक हो जाते हैं नेत्र रोग

Naina Devi Temple, Naina Devi Mandir

Naina Devi Temple | Naina Devi Mandir | Naina Devi Temple | Naina Devi Mandir | Image : wiki

नैना देवी मंदिर (Naina Devi Temple) हिमाचल प्रदेश का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है. यह नैनी झील के उत्तरी किनारे पर पहाड़ी के ऊपर स्थित है.

यह मंदिर ५१ शक्तिपीठों में से एक है. यहाँ देवी सती की शक्ति के रूप में पूजा की जाती है. कहा जाता है कि नैनी झील में देवी सती के नेत्र गिरे थे. इसलिए इस स्थान पर मंदिर का निर्माण किया गया, जो नैना देवी मंदिर (Naina Devi Temple) कहलाता है. इस मंदिर में नैना देवी को दर्शाते दो नेत्रों की स्थापना की गई है.

भक्तगणों का विश्वास है कि इस मंदिर में नैना देवी के दर्शन मात्र से नेत्र संबंधी सभी रोग एवं विकार दूर हो जाते हैं. दूर-दूर से श्रद्धालु और भक्तगण देवी माँ के दर्शन हेतु मंदिर आते हैं. नवरात्रि में यहाँ लगने वाले ८ दिवसीय मेले के कारण भक्तों की संख्या और बढ़ जाती हैं.

नैना देवी मंदिर कहाँ स्थित है? | Where Is Naina Devi Temple Situated?

नैना देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में नैनी झील के उत्तरी किनारे पर पहाड़ी स्थित है.

नैना देवी मंदिर की ऊँचाई/नैना देवी मंदिर की चढ़ाई | Naina Devi Temple Height

नैना देवी मंदिर ११७७ मीटर की ऊँचाई पर पहाड़ी पर स्थित है. सड़क मार्ग द्वारा पहाड़ी तक पहुँचने के बाद कंक्रीट की सीढ़ियों चढ़कर मंदिर तक पहुँचा जाता है.

यहाँ ‘केबल कार’ भी संचालित की जाती है, जो भक्तों को पहाड़ी के ऊपर स्थित मंदिर तक ले जाती है. 

नैना देवी मंदिर का निर्माण/इतिहास  | Naina Devi Temple History 

नैना देवी मंदिर के निर्माण के संबंध में लोगों की विभिन्न मान्यतायें हैं. कुछ का मानना है कि १५ वीं शताब्दी में कुषाण राजवंश के दौरान  मंदिर का निर्माण किया गया था, जो १८८० में आये भू-स्खलन में नष्ट हो गया.

कुछ अन्य लोगों के अनुसार नैना माता के एक भक्त मोती राम शाह द्वारा १८४२ में मंदिर का निर्माण करवाया गया था, जो १८८० में आये भू-स्खलन में नष्ट हो गया था.

भू-स्खलन में नष्ट नैना देवी मंदिर का वर्ष १८८३ में पुनर्निर्माण किया गया. नैना देवी मंदिर के निर्माण के बारे में वर्ष १८८० के पूर्व की कहानी लोगों की मान्यताओं के अनुसार भिन्न-भिन्न है. लेकिन इसमें कोई विवाद नहीं कि मंदिर का पुनर्निमाण १८८३ में हुआ था.   

नैना देवी मंदिर की कहानी | Naina Devi Temple Story

नैना देवी मंदिर के निर्माण और नामकरण के संबंध में कई कहानियाँ भी प्रचलित हैं. उनमें से सबसे ज्यादा बतायी जाने वाली तीन कहानियाँ यहाँ वर्णित हैं:

पहली कहानी

नैना देवी मंदिर ५१ शक्ति पीठों में से एक है. इन शक्ति पीठों के अस्तित्व में आने के पीछे एक ही कथा है, जो भगवान शिव और शक्ति से जुड़ी हुई है. कथा अनुसार एक बार भगवान शिव की पत्नि सती के पिता राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी देवतागण आमंत्रित किये गए.

चूंकि राजा दक्ष भगवान शिव को अपने समकक्ष नहीं मानते थे, इसलिए उन्होंने शिवजी और अपनी पुत्री सती को यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया. जब सती को यज्ञ के संबंध में ज्ञात हुआ, तो उसे अपने पति का यज्ञ में न बुलाया जाना अपमानजनक लगा.

वह बिना आमंत्रण के ही यज्ञस्थल पर पहुँच गई. वहाँ उनके समक्ष राजा दक्ष द्वारा भगवान शिव का घोर अपमान किया गया. जिससे आहत होकर सती ने यज्ञ के हवनकुंड में कूदकर आत्मदाह कर लिया.

यह बात ज्ञात होने पर शिव बहुत क्रोधित हुए. वे यज्ञ स्थल पर पहुँच गये और सती का शरीर हवनकुंड से निकालकर तांडव करने लगे. पूरे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया. सभी देवतागण भगवान विष्णु की शरण में गए.

भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के शरीर के ५१ टुकड़े कर दिए. जहाँ-जहाँ वे टुकड़े गिरे, वहाँ शक्ति पीठ का निर्माण हुआ. देवी सती के शरीर के ५१ टुकड़े थे. इसलिए ५१ शक्ति पीठ बने. नैना देवी में सती के ‘नयन’ गिरे थे, इसलिए इसे “नैना देवी शक्ति पीठ” कहा जाता है.

दूसरी कहानी

मंदिर से संबंधित यह कहानी एक गुज्जर लड़के की है, जिसका नाम ‘नैना’ था. एक बार वह लड़का मवेशी चरा रहा था. तभी उसने देखा कि सफ़ेद रंग की एक गाय के थन से एक पत्थर पर दूध गिरा रही है. ऐसा कई दिनों तक हुआ.

फिर एक रात सोते समय देवी माँ उसके सपने में आई और उसे बताया कि वह पत्थर जिस पर सफ़ेद गाय अपना दूध गिराती है, वह उनकी ‘पिंडी’ है.

उसने यह बात राजा बीरचंद्र को बताई. जब राजा ने अपनी आँखों से इसे होते हुए देखा, उस स्थान पर मंदिर का निर्माण किया और उस गुज्जर लड़के के नाम पर मंदिर का नाम “नैना’ रखा.

तीसरी कहानी

नैना देवी मंदिर ‘महिषापीठ’ के नाम से भी जाना जाता है. कथा अनुसार महिषासुर नामक एक बलशाली असुर को ब्रह्माजी से अमरता का वरदान प्राप्त था. इस वरदान के अहंकार में वह चारों लोक में उत्पात मचाने लगा.

उसका नाश करने के लिए सभी देवताओं से अपनी शक्ति एकत्रित की और उससे एक देवी का सृजन किया, जो महिषासुर का वध कर सके. ब्रह्माजी द्वारा महिषासुर को दिए गए अमरता के वरदान का तोड़ था था कि महिषासुर का वध एक कुंवारी स्त्री द्वारा ही किया जा सकता है.

देवों द्वारा सृजित देवी-देवताओं द्वारा प्रदत्त शस्त्रों से सुसज्जित थीं. जब महिषासुर ने देवी को देखा, तो उनके सौंदर्य पर आसक्त हो गया. उसने देवी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा. देवी ने उससे कहा कि वह उससे तभी विवाह करेंगी, जब वह उन्हें युद्ध में परास्त करेगा. दोनों के मध्य युद्ध हुआ, जिसमें देवी ने उसे परास्त कर दिया और उसकी दोनों आँखें निकाल लीं. तब सभी देवताओं ने ‘जय नैना’ का जयघोष किया. इस तरह उस स्थान पर निर्मित मंदिर का नाम “नैना देवी मंदिर’ (Naina Devi Mandir) पड़ा.

नैना देवी मंदिर की वास्तुकला | Naina Devi Temple Architecture

संगमरमर से निर्मित नैना देवी मंदिर वास्तुकला और सौंदर्य का अद्भुत संगम है. चाँदी की परत चढ़े हुए मंदिर के मुख्य द्वार पर देवी-देवताओं की सुंदर आकृतियाँ उकेरी गई हैं. मंदिर में प्रवेश करने के उपरांत बाईं ओर शताब्दियों पुराना पीपल का पेड़ है. मंदिर के मुख्य द्वार के दाईं ओर भगवान श्री गणेश और हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है.

मुख्य मंदिर के द्वार पर भी चाँदी की परत चढ़ी हुई है और उस पर सूर्य देव और अन्य देवताओं के चित्र बने हुए हैं. मुख्य द्वार पर शेरों की दो प्रतिमायें है.

Naina devi temple, Naina devi mandir

Shri Naina Devi Ji, Naina Devi Temple Himachal Pradesh | Image : panjabkesri.com

मंदिर के गर्भ गृह में तीन पत्थर की मूर्तियाँ स्थापित हैं. पहले पिंडी के रूप में श्री नैना भगवती की मुख्य आकृति है, जो दो सुंदर नेत्रों के रूप में है. दाईं ओर की दूसरी आकृति में भी दो नेत्र हैं. माना जाता है कि पांडवों ने द्वापर युग में इसकी स्थापना की थी. बाईं ओर भगवान श्री गणेश की प्रतिमा स्थापित है.  

नैना देवी मंदिर का दर्शन समय | Naina Devi Mandir Drashan Timing

सामान्य दिनों में नैना देवी मंदिर में दर्शन का समय प्रातः ४:०० बजे से लेकर रात्रि १०:०० बजे तक है. नवरात्रि में दर्शन का समय प्रातः २:०० बजे से लेकर मध्यरात्रि १२:०० बजे तक है. 

नैना देवी मंदिर की आरती | Naina Devi Mandir Aarti

मंगल आरती पूरे दिन की आरती का प्रारंभ सर्वप्रथम ‘मंगल आरती’ से होता है. मंदिर के पुजारी द्वारा ब्रह्म-मुहुर्त प्रातः ४:०० बजे मंदिर के किवाट खोलकर घंटी बजाकर माता को जगाया जाता है.

उसके बाद माता की शैय्या समेटी जाती है और उनके मुख और नेत्र को गडवी में रखे जल से धोया जाता है. फिर माता को ५ मेवों का भोग लगाया जाता है, जिसे ‘मोहन भोग’ कहते हैं. ५ मेवों के भोग में काजू, बादाम, खुमानी, गरी, छुआरा, मिश्री, किशमिश में से कोई भी ५ मेवे शामिल होते हैं.  

मंगल आरती में दुर्गा सप्तशती में वर्णित महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती के ध्यान मंत्र उच्चारित किये जाते हैं. माता के मूल बीज मंत्र और माता श्रीनयनादेवी के ध्यान के विशिष्ट मंत्र भी उच्चारित होते हैं. ये सभी मंत्र गोपनीय होते हैं और दीक्षा प्राप्त पुजारी को ही बताये जाते हैं.

श्रृंगार आरती – श्रृंगार आरती का समय प्रातः ६:०० बजे है. जिसमें एक व्यक्ति मंदिर के पीछे ढलान की ओर नीचे २ किलोमीटर की दूरी पर स्थित “झीड़ा” नमाक बावड़ी से जल की गागर लाता है. इस व्यक्ति को ‘गगरिया’ कहते हैं.

इस जल के द्वारा षोडशोपचार विधि से माता को स्नान करवाकर उनका हार श्रृंगार किया जाता है. माता की स्तुति सप्तश्लोकी दुर्गा और रात्रिसूक्त के श्लोकों द्वारा की जाती है और उन्हें हलवे तथा बर्फी का भोग लगाया जाता है.

श्रृंगार आरती उपरांत दशमेश गुरु गोविन्दसिंह जी द्वारा स्थापित यज्ञशाला स्थल पर हवन किया जाता है, जिसमें स्वसित वाचन, गणपतिपूजन, संकल्प, श्रोत, ध्यान, मंत्र जाप, आहुति आदि की जाती है.

मध्यान्ह आरती – मध्यान्ह आरती का समय दोपहर १२:०० बजे है. इस आरती में चांवल, माश की दाल, मुंगी साबुत या चने की दाल, खट्टा, मधरा और खीर आदि का भोग लगाया जाता है तथा ताम्बूल चढ़ाया जाता है. इस आरती में सप्तश्लोकी दुर्गा के श्लोकोण से माता की स्तुति की की जाती है.

सायं आरती – शाम ६:०० बजे सायं आरती होती है. इस आरती में गगरिया झीड़ा बावड़ी से पानी लाता है. उससे माता के स्नान के बाद श्रृंगार जाता है. फिर माता को चने और पूरी का भोग लगाया जाता है, जिसे ‘श्याम भोग’ कहते हैं. इस समय ताम्बूल भी अर्पित किया जता है. सायं आरती में सौंदर्य लहरी के विभिन्न श्लोकों का गायन होता है.

शयन आरती – रात ९:३० बजे माता के शयन के समय  ‘शयन आरती’ की जाती है. इस समय माता को दूध और बर्फ़ी का भोग लगाया जाता है, जिसे ‘दुग्ध भोग’ कहते हैं. भोग उपरांत श्रीमदशंकराचार्य विरचित सौंदर्य लहरी के श्लोक बोले जाते हैं. 

नैना देवी मंदिर के मुख्य आकर्षण | Naina Devi Temple Tourists Attraction

मुख्य मंदिर के अतिरिक्त नैना देवी मंदिर के आस-पास कई आकर्षण है.   

Naina Devi Temple, Naina Devi Mandir

Naina Devi Temple, Himachal Pradesh | Naina Devi Temple | Naina Devi Mandir | Image : wiki

नैना देवी गुफ़ा (Naina Devi Cave) 

नैनादेवी मंदिर के पास ही नैना देवी गुफ़ा है. यह गुफ़ा ७० फीट गहरी है. भक्तगण इस गहरी गुफ़ा में उतरकर पथरीले संकरे मार्ग से होते हुए दर्शन के लिए जाते हैं. यहाँ भी देवी माँ की प्रतिमा स्थापित है. 

रोप-वे (Rope-way) 

रोप-वे कोलकाता की एक कंपनी द्वारा स्थापित किया गया है. इसे “रज्जू मार्ग” (Rajju Marg) के रूप भी कहा जाता है. यहाँ से मंदिर तक पहुँचने केबल कार संचालित की जाती है. यहाँ लगभग 20 केबल कारें हैं, जिनका एक ओर का अनुमानित किराया ३५ रूपये है.

कृपाली कुंड (Kripali Kund)

जब देवी ने युद्ध में राक्षस महिषासुर को परास्त किया, तो उसकी दोनों आँखें निकाल निकालकर पहाड़ियों के पीछे फेंक दिया. दोनों आँखें अलग-अलग स्थानों पर गिरीं, जहाँ बाद में दो कुओं की उत्पत्ति हुई.

ये दोनों कुएं मंदिर के नीचे की तरफ़ २ किलोमीटर की दूरी पर हैं. । इनमें से एक कुवां “बम की बावड़ी” (Bam ki Bawri) या ‘जरा की बावड़ी’ (Jheera ki Bawri) कहा जाता है. दूसरा कुवां भुखाक बावड़ी (Bhubhak Bawri) कहा जाता है.  

कृपाली कुंड के बारे में एक किंवदंती यह है कि यह भगवान ब्रह्मा द्वारा उस स्थान पर बनाया गया था, जहाँ महिषासुर की खोपड़ी गिरी थी. इसे ब्रह्म कृपाली कुंड (Brahm Kripali Kund) भी कहा जाता है.

खप्पर महिषासुर (Khappar Mahishasur)

यह मंदिर के मुख्य भवन के पास स्थित एक पवित्र स्थल है. भक्त गण देवी माँ के दर्शन के पूर्व यहाँ स्नान करते हैं.

कला जोहर (Kala Johar)

इस स्थान को “चिकशु कुंड” भी कहा जाता है. महिषासुर के मुख्य सेनापति चिकुर की खोपड़ी इस स्थल पर गिरी थी. यहाँ लोग त्वचा की समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए स्नान करते हैं, खासकर बच्चों को यहाँ स्नान करवाया जाता है. लोककथाओं के अनुसार जिन विवाहित महिलाओं के बच्चे नहीं हो रहे होते, वे यहाँ स्नान कर संतान सुख प्राप्त करती हैं.

कोलन वाला तोबा (Kolan Wala Toba)

श्री नैना देवी मंदिर जी की यात्रा का यह पहला पड़ाव है. यह एक पवित्र जलकुंड है, जहाँ मंदिर दर्शन के पूर्व लोग स्नान करते हैं. यह कुंड यहाँ खिलने वाले कमल के लिए जाना जाता है. मंदिर ट्रस्ट ने इस क्षेत्र के विकास के लिए 1.25 करोड़ दिए हैं.

नैना देवी मंदिर कैसे पहुँचे? | How To Reach Naina Devi Temple?

वायु मार्ग (By Air) – नैना देवी जाने के लिए निकटतम एयरपोर्ट चंडीगढ़ एयरपोर्ट है. जहाँ से बस और कैब की सुविधा उपलब्ध है. इसके अतिरिक्त अमृतसर एयरपोर्ट दूसरा निकटतम एयरपोर्ट है.

रेल मार्ग (By Rail) – नैना देवी मंदिर जाने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन चंडीगढ़ और पालमपुर रेलवे स्टेशन है. यहाँ से बस या कैब की सुविधा उपलब्ध है.

सड़क मार्ग (By Road) – चड़ीगढ़ सड़क मार्ग द्वारा देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है. इसलिए बस, टैक्सी द्वारा चड़ीगढ़ होते हुए नैना देवी आसानी से पहुँचा जा सकता है. 


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