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ममलेश्वर महादेव मंदिर (Mamleshwar Mahadev Temple), यहाँ के अग्निकुंड में ५००० वर्षों से जल रही है ज्वाला

Mamleshwar Mahadev Temple Karsog History & Story In Hindi : हिमांचल प्रदेश की ख़ूबसूरत वादियों को देवभूमि कहा जाता है. यह देवभूमि ‘मंदिरों की नगरी’ है. यहाँ हर कोने पर देवी-देवताओं के मंदिर स्थापित है. इन्हीं मंदिरों में एक मंदिर ऐसा भी है, जो वहाँ घटित होने वाले चमत्कार के कारण लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गया है.

यह मंदिर है – ममलेश्वर महादेव मंदिर (Mamleshwar Mahadev Temple). शिव-पार्वती के इस मंदिर के अग्निकुंड की ज्वाला ५००० वर्षों से अनवरत जल रही है. यह ज्वाला इतने वर्षों से कैसे धधक रही है? ये कोई नहीं जानता. लोग इसे चमत्कार मानते हैं और इस चमत्कार का साक्षी बनने दूर-दूर से यहाँ आते हैं.

आखिर क्यों जल रही है ममलेश्वर महादेव मंदिर (Mamleshwar Mahadev Temple) के अग्निकुंड की अग्नि? क्या है इसके पीछे का रहस्य? कहाँ से जुड़े हैं इसके तार? क्या है इस मंदिर का इतिहास? आइये जानते हैं विस्तार से :

mamleshwar mahadev temple karsog | Image Source : Panjabkesari

ममलेश्वर महादेव मंदिर (Mamleshwar Mahadev Temple)

ममलेश्वर महादेव मंदिर (Mamleshwar Mahadev Temple) हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले की तहसील करसोग के ममेल गाँव में स्थित है. शिमला से इसकी दूरी १०८ किलोमीटर है. मंडी से इसकी दूरी १२५ किलोमीटर है.

इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि यह भृगु ऋषि की तपोस्थली थी. हिमयुग में अंत के उपरांत कैलाश पर्वत के धरातल में हुए परिवर्तनों के फ़लस्वरूप किन्नरों को वहाँ से विस्थापित होना पड़ा और वे इस क्षेत्र में आकर बस गये. भृगु ऋषि ने  मामिल्षा नामक एक किन्नर कन्या से विवाह कर लिया और उस किन्नर कन्या के नाम से ही इस स्थान का नाम ‘ममेल’ पड़ा. भृगु ऋषि और मामिल्षा की दो पुत्रियाँ हुई – इमला और बिमला, जो आज यहाँ नदियों के रूप में प्रवाहित होकर पूरे क्षेत्र को सिंचित करती है. इन दो नदियों के कारण की करसोग गाँव की भूमि उपजाऊ बनी.

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ममलेश्वर महादेव मंदिर का स्थापत्य

ममलेश्वर महादेव मंदिर (Mamleshwar Mahadev Temple) शिव और पार्वती को समर्पित है. यह विश्व का एकमात्र मंदिर है, जहाँ शिव और पार्वती की प्रतिमा युगल रूप में स्थापित हैं. मंदिर का मुख्य भवन लकड़ी से निर्मित है, जिन पर उत्कृष्ट नक्काशी की गई है. देवी-देवताओं के अतिरिक्त इन पर अन्य कई आकृतियाँ भी उकेरी गई हैं. मुख्य भवन के चारों ओर की दीवारों पर काष्ठ की मूर्तियाँ बनी हुई है, जो दर्शनीय हैं. गर्भगृह में शिव-पार्वती की प्रतिमा युगल में स्थापित है. मंदिर के प्रवेश द्वार पर भी शिव-पार्वती की युगल प्रतिमा स्थापित की गई है.

महाभारत काल से हैं संबंध

ममलेश्वर महादेव मंदिर महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. अपने अज्ञातवास के दौरान पाँचों पांडवों ने यहाँ कुछ समय के लिए ठहरे थे, जिसके प्रमाण में कई साक्ष्य आज भी इस मंदिर में मौजूद हैं.

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Bheem Ka Dhol, 200 gm Genhu Ka Dana | Image Source – amarujala

भीम का ढोल – इस मंदिर में एक प्राचीन ढोल रखा हुआ है. कहा जाता है कि यह ढोल ५००० वर्ष पुराना भीम का ढोल है. भेखल की लकड़ी से निर्मित यह ढोल आकार में विशाल और गोलाकार है.

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२००० गुना बड़ा गेंहूँ का दाना – यहाँ पांडवों के समय का एक गेंहूँ का दाना भी सुरक्षित रखा गया है. इन दाने की विशेष बात यह है कि यह समान्य गेंहूँ के दाने से २००० गुना बड़ा है और इसका वजन २०० ग्राम है. आकार में यह आम के बराबर है. इसे लकड़ी के डिब्बे में बंद कर रखा गया है, जिस पर पारदर्शी कांच लगा है, ताकि यह सुरक्षित रह सके. देखने के अभिलाषी लोग मंदिर के पुजारी से निवेदन कर इसे देख सकते हैं.

५ शिवलिंग – यहाँ पांडवों द्वारा ५ शिवलिंग स्थापित किये गए थे, जो आज भी देखे जा सकते हैं. इसके अतिरिक्त एक मान्यता यह है कि भगवान परशुराम ने करसोग घटी मने ८० शिवलिंगों की स्थापना की थी. ८१वां शिवलिंग उन्होंने इस मंदिर में स्थापित किया.

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Shivling, Mamleshwar Mahadev | Image Source – Patrika

५००० वर्षों से जलता अग्निकुंड – इस मंदिर में एक अग्निकुंड है. इस अग्निकुंड की अग्नि पिछले ५००० वर्षों से जल रही है. आश्चर्य की बात यह भी है कि इन अग्निकुंड की राख वर्षों से उतनी की उतनी है. न यह बढ़ती है और ना ही कम होती है. वैज्ञानिक भी इन अग्निकुंड की अग्नि के रहस्य से पर्दा उठाने में असफ़ल रहे हैं. लोग इसे चमत्कार मानते हैं और इसकी पूजा करते हैं. इन अग्निकुंड की राख पवित्र मानी जाती है. लोग दर्शन के उपरांत इस राख को अपने मस्तक पर लगाते हैं और इसे अपने साथ ले जाते हैं.

अग्निकुंड में जलती ज्वाला से संबंधित पौराणिक कथा

जनश्रुति के अनुसार जब पांडव अज्ञातवास के समय कुछ दिनों के लिए इस गाँव में ठहरे थे, तब बकासुर नामक राक्षस ने गाँव के लोगों को आतंकित कर रखा था. वह गाँव के पास ही एक गुफा में निवास करता था. कहीं एक साथ वह पूरे गाँव के लोगों को मौत के घाट न उतार दे, इस भय से गाँववालों ने उसके साथ एक समझौता किया था. समझौते अनुसार गाँववालों को प्रतिदिन एक व्यक्ति उसके भोजन के लिए उसके पास भेजना था.

एक दिन उस परिवार के लड़के की बारी आई, जहाँ पांडव अतिथि के रूप में रुके थे. लड़के की माँ बहुत दु;खी थी और विलाप कर रही थी. पूछने पर पांडवों को बकासुर राक्षस के आतंक के बारे ज्ञात हुआ. अतिथि धर्म निभाते हुए उस लड़के के स्थान भीम बकासुर के पास गए. बकासुर और भीम में भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें भीम ने बकासुर का वध कर पूरे गाँव को उसके आतंक से मुक्ति प्रदान की. भीम के विजय के उल्लास में एक अग्निकुंड में अग्नि प्रज्ज्वलित की गई, जो तब से लेकर आज तक जल रही है.

mamleshwar mahadev temple

Mamleshwar Mahadev Temple Karsog | Image – panjabkesari

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पास स्थित मंदिर में दी जाती हैं नरबलि

ममलेश्वर महादेव मंदिर (Mamleshwar Mahadev Temple) के पास ही एक विशाल मंदिर है. लोगों की माने, तो प्राचीन काल में इन मंदिर में ‘भूडा यज्ञ’ किया जाता था और यज्ञ के दौरान नरबलि दी जाती थी. उस काल में पुजारीगण ही मंदिर में प्रवेश कर सकते थे. वैसे तो यह मंदिर वर्षों से बंद पड़ा है. किंतु यदि मंदिर में जाना हो, तो प्राचीन काल की तरह पुजारी ही मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं.

कैसे पहुँचे ममलेश्वर महादेव मंदिर? (How To Reach Mamleshwar Mahadev Temple)

ममलेश्वर महादेव मंदिर (Mamleshwar Mahadev Temple) शिमला और मंडी से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है. शिमला और मंडी पहुँचकर बस, टैक्सी या स्वयं की कार से मंदिर दर्शन के लिए पहुँचा जा सकता है.

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