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बाबा टांगीनाथ धाम, यहाँ गड़ा है भगवान परशुराम का फरसा | Baba Tanginath Dham History In Hindi

Baba Tanginath Dham History In Hindi : दोस्तों, आपने भगवान परशुराम के बारे में अवश्य सुना या पढ़ा होगा. उनका उल्लेख रामायण, महाभारत, भगवत पुराण, कल्कि पुराण आदि में मिलता है. वे भगवान विष्णु के ६वें अवतार माने जाते हैं.

उनका नाम दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘परशु’ और ‘राम‘. परशु का का अर्थ है ‘कुल्हाड़ी’. इस तरह उनके नाम का अर्थ हुआ – “कुल्हाड़ी के साथ राम”.

ऋषिपुत्र होने के बावजूद वे एक कुशल युद्ध योद्धा थे. उनका प्रमुख शस्त्र कुल्हाड़ी था, जिसे ‘फरसा’ या ‘परशु’ भी कहा जाता है. भगवान शिव से उन्हें देवताओं के सभी शत्रुओं, दैत्यों, राक्षसों और दानवों के संहार करने में सक्षमता का वरदान प्राप्त हुआ था.

भगवान परशुराम का फरसा आकार-प्रकार और देखने में अति-भयानक था. ऐसा कि देखने वाले की रूह कांप जाये. आज भी उनका वह फरसा पृथ्वी लोक में मौज़ूद है. कहा जाता है कि उनका फरसा झारखण्ड के “टांगीनाथ धाम” में गड़ा हुआ है.

आइये विस्तार से जानते हैं – “टांगीनाथ धाम” के बारे में :

Baba Tanginath Dham

टांगीनाथ धाम का नवनिर्मित मंदिर | Souce : livehindustan.com

टांगीनाथ धाम कहाँ है?

झारखण्ड (Jharkhand) राज्य की राजधानी रांची (Ranchi) से १५० किलोमीटर दूर और जिला मुख्यालय गुमला (Gumla) से ७५ किलोमीटर दूर स्थित डुमरी प्रखंड से ८ किलोमीटर दूर लुचुतपाट की पहाड़ियों में बाबा टांगीनाथ धाम (Baba Tanginath Dham) स्थित है. यह हिन्दुओं का प्राचीन मंदिर और आस्था का केंद्र है. भगवान परशुराम का फरसा यहाँ आज भी जमीन में गड़ा हुआ है.

फरसे को झारखण्ड की नागपुरिया भाषा में ‘टांगी’ कहा जाता है. इसलिए इस स्थान का नाम “टांगीनाथ धाम” पड़ गया. भगवान परशुराम के फरसे के अतिरिक्त उनके ‘पदचिन्ह’ की मौजूदगी भी इस स्थान की विशेषता है.

बाबा टांगीनाथ धाम (Baba Tanginath Dham) में भगवान शिव का मंदिर है. इस मंदिर एक अतिरिक्त यहाँ कई छोटे मंदिर हैं. यह स्थल ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्ता भी रखता है. यहाँ चारों ओर सैकड़ों शिवलिंग और देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बिखरी हुई है, जो हैरत में डालती हैं.

Baba Tanginath Dham

टांगीनाथ धाम में देवी-देवताओं की मूर्तियाँ | Source : Durjan Paswan Prabhat khabar

टांगीनाथ धाम से जुड़ी पौराणिक कथा (Tanginath Dham Mythological Story)

प्रथम कथा 

भगवान राम की तरह परशुराम भी विष्णु अवतार थे. किंतु उन्हें ये बात ज्ञात नहीं थे. राजा जनक की पुत्री सीता के स्वयंबर में राम ने शिवजी का पिनाक धनुष तोड़ दिया था. जिसके बाद सीता ने उन्हें अपना वर चुना था.

शिव जी धनुष राम द्वारा तोड़ देने की बात जब परशुराम को ज्ञात हुई, तो वे अत्यंत क्रोधित हुए और स्वयंबर स्थल में पहुँचे. वहाँ उन्होंने भगवान राम को बहुत भला-बुरा कहा. किंतु राम मौन रहे.

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लक्ष्मण से यह सहा नहीं गया और वे परशुराम से बहस करने लगे. इस बहस के दौराम परशुराम को ज्ञात हुआ कि उनकी तरह भगवान राम भी विष्णु अवतार है. यह जानकर वे आत्मग्लानि से भर उठे.

पछतावे के लिए वे लुचुतपाट पर्वत के घने वन में चले गए और वहाँ एक स्थान पर शिवलिंग (Shivlinga) स्थापित कर और पास ही अपना फरसा शिवजी गाड़ कर १००० वर्षों तक शिव जी (Lord Shiva) की उपासना की. वह स्थान आज “टांगीनाथ धाम” (Tanginath Dham) के नाम से प्रसिद्ध है.

Baba Tanginath Dham

भगवान परशुराम का फरसा | | Source : Soma Roy patrika.com

द्वितीय कथा

बाबा टांगीनाथ धाम (Baba Tanginath Dham) में गड़े फरसे का ऊपरी भाग आकार-प्रकार में त्रिशूल की भांति भी नज़र आता है. इसलिए लोग इसे शिवजी से जोड़ते हुए इसे “भगवान शिव का त्रिशूल” भी कहते हैं.

कथा अनुसार एक बार शिव जी किसी बात पर शनिदेव पर क्रोधित हो गए. क्रोध में उन्होंने शनिदेव पर अपने त्रिशूल से प्रचंड प्रहार किया. शनिदेव उस प्रहार से किसी प्रकार बच गए, किंतु वे त्रिशूल जाकर एक पर्वत में धंस गया. टांगीनाथ धाम में गड़े फरसे को इस मान्यता के अनुसार वही त्रिशूल माना जाता है.

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टांगीनाथ धाम के फरसे का रहस्य 

भगवान परशुराम का फरसा टांगीनाथ धाम (Tanginath Dham) में हजारों वर्षों से गड़ा हुआ है, किंतु आज तक इसमें जंग नहीं लगी. जो अपने आप में आश्चर्य की बात है.

साथ ही यह भी ज्ञात नहीं कि यह फरसा कितने फीट तक जमीन में धंसा हुआ है. एक अनुमान अनुसार यह लगभग १७ फीट भीतर जमीन में धंसा है. लेकिन यह एक अनुमान मात्र है. वास्तविकता किसी को ज्ञात नहीं है.

टांगीनाथ धाम के फरसे के संबंध में किवंदती

ऐसा नहीं है कि इस फरसे के साथ कभी कोई छेड़खानी नहीं हुई. एक बार इस क्षेत्र में रहने वाली लोहार जाति के लोगों ने इस फरसे को काटकर लोहा प्राप्त करने की कोशिश की थी. किंतु वे सफल नहीं हो पाए थे.

उसके कुछ वर्षों में ही उस समुदाय के लोगों की अकाल मृत्यु होने लगी. जिसे परशुराम के फरसे को काटने के दुस्साहस का परिणाम माना गया. उस घटना के बाद लोहार जाति के लोग वह क्षेत्र छोड़कर अन्यत्र चले गए. आज भी टांगीनाथ धाम के २५ किलोमीटर परिधि मने लोहार जाति ले लोग वास नहीं करते.

टांगीनाथ धाम की खुदाई

टांगीनाथ धाम में १९८९ ई० में खुदाई की गई थी. यह धाम लुचुतपाट पर्वत में सुखवा के जंगलों में स्थित है. इसलिए यहाँ खुदाई करना एक कठिन कार्य है. यहाँ खुदाई एक सप्ताह तक चली और कुछ ही दूरी तक ही हो सकी.

Baba Tanginath Dham

खुदाई में प्राप्त वस्तुयें | Source : Durjan Paswan Prabhat khabar

इस खुदाई में  हीरे जड़ा मुकुट, सोने का कड़ा, सोने की बनी कान की बाली, तांबे का टिफिन (जिसमें काला टिल और चांवल था) प्राप्त हुआ. ये तमाम चीज़ें आज भी डुमरी थाना में एक बक्से में रखी हुई है.

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टांगीनाथ धाम में नए मंदिर का निर्माण (New Temple At Tanginath Dham)

भगवान परशुराम की तपोस्थली बाबा टांगीनाथ धाम उचित रखरखाव के अभाव में जीर्ण-शीर्ण होता जा रहा था. कुछ वर्षों पूर्व प्रशासन का ध्यान इस ओर गया और पर्यटन विभाग के साथ मिलकर यहाँ के पुराने शिव मंदिर का नवीनीकरण करवाकर एक भव्य और आकर्षक मंदिर का निर्माण करवाया गया. यहाँ बिखरी प्रतिमाओं और शिवलिंग को कतारबद्ध कर पुनः स्थापित करवाया गया.

टांगीनाथ धाम में महाशिवरात्रि पर मेला (Mahashivratri Fair Tanginath Dham)

श्रद्धालुओं के अनुसार बाबा टांगीनाथ धाम (Baba Tanginath Dham) में भगवान शिव का निवास है. स्थानीय आदिवासी बैगा और पाहन यहाँ के पुजारी है. इन प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर में झारखण्ड (Jharkhand) और निकट के राज्य छत्तीसगढ़, बिहार आदि से श्रद्धालु दर्शन हेतु आते हैं.

मुख्यतः सावन के महीने और महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ भक्तों और श्रद्धालुओं का जमवाड़ा लगता है. महाशिवरात्रि के समय यहाँ ३ दिन के मेले का आयोजन होता है.

टांगीनाथ धाम कैसे पहुँचे? (How To Reach Tanginath Dham)

वायुमार्ग या रेल मार्ग से बाबा टांगीनाथ धाम (Tanginath Dham) पहुँचने के लिए रांची एयरपोर्ट या रांची रेल्वे स्टेशन पहुँचकर वहाँ से सड़क मार्ग से गुमला और डुमरी होते हुए टांगीनाथ पहुँचना होगा. गुमला से टांगीनाथ धाम के लिए बस चलती हैं.

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