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करणी माता मंदिर (Karni Mata Temple Deshnok) में है २५००० चूहों का वास, इनका झूठा प्रसाद बंटता है

Karni Mata Temple

Karni Mata Temple | Source : wiki  licensed under CCA 2.0

Karni Mata Temple (Mandir) History In Hindi 

दोस्तों, आज हम आपको भारत के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपने आप में अनोखा है. इस मंदिर परिसर में कदम रखते ही आपको असंख्य चूहे इधर-उधर दौड़ते-भागते नज़र आ जायेंगे. यह भारत का ही नहीं, बल्कि विश्व का एकमात्र मंदिर है, जहाँ इतनी बड़ी तादात में चूहे पाए जाते हैं. इस कारण इस मंदिर को ‘चूहों का मंदिर’ या ‘चूहों वाली माता का मंदिर’ (Rat Temple) भी कहा जाता है.

यह मंदिर है – राजस्थान (Rajasthan) के देशनोक (Deshnok) में स्थित ‘करणी माता का मंदिर’ (Karni Mata Temple). यह एक प्राचीन मंदिर है, जो करणी माता (Karni Mata) को समर्पित है. यहाँ २५००० से भी अधिक चूहे (Rat) निवास करते हैं. इन चूहों  को पवित्र माना जाता है और इनका जूठा प्रसंद श्रद्धालुओं और भक्तों में वितरित किया जाता है. करणी माता के आशीर्वाद से अपनी मनोकामना पूर्ण करने इस मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. पर्यटकों के लिए भी यह मंदिर सदा रुचि का विषय रहा है. आइये जानते हैं करणी माता मंदिर के बारे में :

करणी माता मंदिर का निर्माण और इतिहास (Karni Mata Mandir Cosntruction & History In Hindi)

करणी माता का मंदिर (Karni Mata Temple) राजस्थान के बीकानेर जिले से ३० किलो मीटर दूर देशनोक नामक स्थान पर स्थित है. इस मंदिर का निर्माण बीसवीं शताब्दी के आरंभ में बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने करवाया. करणी माता (Karni Mata) को बीकानेर राजघराने की कुलदेवी माना जाता है. स्थानीय लोगों के अनुसार करणी माता के आशीर्वाद से ही बीकानेर (Bikaner) और जोधपुर (Jodhpur) रियासत की स्थापना हुई थी.

देशनोक करणी माता की फोटो 

Karni Mata Temple

Karni Mata Idol | Image Source : wiki licensed under CCA 3.0

करणी माता संपूर्ण कथा 

करणी माता को साक्षात माँ जगदम्बा का अवतार माना जाता है. मान्यता है कि वे एक सामान्य ग्रामीण कन्या के रूप में १३८७ में एक चारण परिवार में जन्मी थी. जन्म उपरांत उनका नाम ‘रिधुबाई’ रखा गया. विवाह योग्य होने पर उनका विवाह साठिया गाँव के किपोजी चारण से करवा दिया गया. किंतु विवाह के कुछ वर्ष उपरांत ही उनका मन सांसारिक जीवन से उचट गया. अपनी छोटी बहन गुलाब का विवाह अपने पति से करवाने के उपरांत उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन माता की भक्ति और जन कल्याणकारी कार्यों के प्रति समर्पित कर दिया.

Karni Mata Temple Deshnok

Main gate Karni Mata Temple/ mandir | Source ; wiki CCA 2.0 license

उनके जन कल्याण के लिए उन्होंने कई चमत्कार भी किये, जिसके कारण लोग उन्हें ‘करणी माता’ (Karni Mata) बुलाने लगे. वे आज से साढ़े छः सौ वर्ष पूर्व एक गुफा में रहकर माता की भक्ति-आराधना करती थीं. वह गुफ़ा आज भी इस मंदिर परिसर में है. वे १५१ वर्ष जीवित रहकर २३ मार्च १५३८ को ज्योतिर्लिन हुई. उनके ज्योतिर्लिन होने के उपरांत उनकी अंतिम इच्छा का पालन कर लोगों ने उनकी मूर्ति की स्थापना इस गुफ़ा में की. तब से निरंतर लोग यहाँ उनकी पूजा करते आ रहे हैं.

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करणी माता मंदिर की वास्तुकला (Karni Mata Temple Architecture)

करणी माता मंदिर (Karni Mata Temple) की वास्तुकला देखने योग्य है. मंदिर की संरचना में राजपूताना और मुगलई शैली की झलक देखने को मिलती हैं. मंदिर का निर्माण बलुआ पत्थर से किया गया है. यहाँ कई द्वार, गलियारे और सुंदर नक्काशी की हुई दीवारें हैं. मंदिर के मुख्य द्वार पर संगमरमर की नक्काशी की गई है. हाथ में त्रिशूल पकड़ी हुई देवी की प्रतिमा गर्भगृह में स्थापित है. यहाँ चाँदी की किवाड़, सोने का छत्र और चूहों के भोग के लिए रखी चाँदी की बड़ी परात आकर्षण के केंद्र है.

Karni mata temple deshnok

Karni mata temple deshnok | karni mata mandir | karni mata temple

चूहों के पीछे की कहानी (Story Behind Rats)

मंदिर में पाए जाने वाले चूहों को ‘काबा’ कहा जाता है. लोगों का कहना है कि करणी माता का सौतेला पुत्र (उनकी बहन का पुत्र) लक्ष्मण एक बार कोलायत तहसील में स्थित कपिल सरोवर में पानी पी रहा था. उस दौरान उसका पैर फिसला और उसी सरोवर में डूबकर उसकी मृत्यु हो गई.

पुत्र को जीवित करने की याचना लेकर करणी माता यमराज के पास पहुँची. यमराज ने उनके पुत्र को पुनर्जीवित तो किया, किंतु मूषक (चूहे) के रूप में. माना जाता है कि करणी माता के वारिस मृत्यु उपरांत चूहों के रूप में पुनर्जीवित होते है.

इन चूहों की खास बात ये है कि सुबह ५ बजे और शाम को ७ बजे होने वाली मंगल आरती के समय ये अपने बिलों से बाहर आ जाते हैं. इन्हें भोग लगाने के बाद वही प्रसाद भक्तों में वितरित किया जाता है. चूहों का ये जूठा प्रसाद पवित्र माना जाता है. इसे खाकर आज तक कोई भक्त बीमार नहीं हुआ. यहाँ तक कि जब भारत में प्लेग जैसी महामारी फैली थी. तब भी भक्तगण ये प्रसाद खाते थे.

मंदिर में प्रवेश करते समय यह विशेष ख्याल रखा जाता है कि चूहों को कोई नुकसान न पहुँचे. इसलिए मंदिर परिसर में मुख्य प्रतिमा तक जाते समय लोग पैर घिसटकर चलते हैं, ताकि कोई चूहा पैरों तले दबकर मर न जाये. यदि आते-जाते किसी चूहे की मृत्यु हो गई, तो उसकी चाँदी की मूर्ती मंदिर में चढ़ानी पड़ती है. चूहों की चील, गिद्ध और अन्य जानवरों से रक्षा के लिए मंदिर में जाली लगाईं गई है.

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सफ़ेद चूहे (White Rats)

काले चूहों के अतिरिक्त मंदिर में सफ़ेद चूहे भी पाये जाते हैं. माना जाता है कि ये सफ़ेद चूहे करणी माता और उनके पुत्र हैं. इन सफ़ेद चूहों को बहुत मंगलकारी माना जाता है. इसके दर्शन पर माना जाता है कि मनोकामना पूर्ण होगी.

करणी माता मंदिर का समय (Karni Mata Mandir Timing)

भक्तों के लिए करणी माता मंदिर प्रतिदिन प्रातः ४ बजे खुल जाता है. पंडितों द्वारा मंगल आरती किये जाने के बाद भक्तगण मंदिर के चूहों को प्रसाद खिला सकते हैं. देशनोक का यह मंदिर रात १० बजे बंद हो जाता है.

करणी माता मंदिर कैसे पहुँचे? (How To Reach Karni Mata Temple)

करणी माता का मंदिर बीकानेर से ३० किलो मीटर दूर देशनोक में स्थित है. यहाँ पहुँचने के लिए बीकानेर से टैक्सी ली जा सकती है. देशनोक के लिए बीकानेर से बस भी चलती है.


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