पढ़ें मूर्ख गधा और मूर्तिकार की कहानी, Murkh Gadha Aur Murtikar Ki Kahani, The Foolish Donkey and a Sculptor Story In Hindi स्वयं को भगवान समझने वाले गधे की कहानी
Murkh Gadha Aur Murtikar Ki Kahani
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एक गांव में एक मूर्तिकार रहता था। मूर्तियां बनाने में वह निपुण था। वह बड़ा परिश्रमी भी था और पूरे लगन से मूर्तियां बनाया करता था। उसकी बनाई मूर्तियां बोलती सी जान पड़ती थी। धीरे धीरे उसकी प्रसिद्धि पूरे राज्य में फैल रही थी।
एक दिन राजा के कानों में मूर्तिकार की प्रसिद्धि पहुंची। उसने उसे अपने राजमहल में बुलवाया। मूर्तिकार राजा के सामने उपस्थित हुआ। राजा ने उसे अपने राजमहल के मंदिर के लिए देवता की मूर्ति बनाने की आज्ञा दी और इसके लिए सात दिन का समय दिया।
घर आकर मूर्तिकार मूर्ति बनाने में जुट गया। सात दिन के कड़े परिश्रम के बाद उसने देवता की मूर्ति तैयार कर ली। जब मूर्ति तैयार हो गई, तो वह मूर्ति को गधे पर रखकर राजा को देने के लिए राजमहल जाने लगा।
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रास्ते में जो भी देवता की मूर्ति को देखता, श्रद्धावश झुककर प्रणाम करता। ये देख मूर्ख गधा सोचता कि गांव वाले उसे झुककर प्रणाम कर रहे हैं। उसमें अकड़ आ गई और वह अपने आपको देवता तुल्य समझने लगा। अब उसे आगे बढ़ने में कोई रुचि नहीं थी। वह इस बात से खुश था कि आते जाते लोग उसे प्रणाम कर रहे हैं।
मूर्तिकार के कहने पर भी गधा बहुत धीरे-धीरे चल रहा था। एक जगह आकर तो वह अड़ गया। मूर्तिकार ने कई बार उसे आगे बढ़ने के लिए कहा, मगर गधा टस से मस नहीं हुआ। गधे का अड़ियल रवैया देखकर मूर्तिकार को क्रोध आ गया। उसने लठ्ठ से गधे की जोरदार पिटाई की। तब गधे के अक्ल ठिकाने आई और वह मुंह लटकाकर सारे रास्ते मार खाता हुआ राजमहल पहुंचा।
सीख (The Foolish Donkey And A Sculptor Story In Hindi Moral)
समझदार के लिए एक इशारा ही बहुत है, जबकि मूर्ख अपनी मूर्खतावश सदा क्रोध का पात्र बनते हैं।
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