राजस्थान का खजुराहो किसे कहा जाता है? | Rajasthan Ka Khajuraho Kise Kaha Jata Hai?

राजस्थान का खजुराहो किसे कहा जाता है? | Rajasthan Ka Khajuraho Kise Kaha Jata Hai? Khajuraho Of Rajasthan In Hindi 

Rajasthan Ka Khajuraho Kise Kaha Jata Hai

Rajasthan Ka Khajuraho Kise Kaha Jata Hai?

राजस्थान का खजुराहो किसे कहा जाता है?

राजस्थान, जिसे महलों, किलों और विशाल रेगिस्तान के लिए जाना जाता है, अपने समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों के लिए भी प्रसिद्ध है। इस राज्य की मिट्टी में न जाने कितने इतिहास के पन्ने दबे हुए हैं, और उन्हीं में से एक महत्वपूर्ण अध्याय है किराडू के मंदिरों का। इन्हें “राजस्थान का खजुराहो” कहा जाता है, जो अपने अद्वितीय वास्तुशिल्प और मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध हैं।

किराडू का इतिहास और परिचय

किराडू मंदिरों का समूह राजस्थान के बाड़मेर जिले में स्थित है, जो थार के मरुस्थल में बसा हुआ है। यह स्थल भारत के सबसे रहस्यमय और अद्वितीय पुरातात्विक स्थलों में से एक है। किराडू मंदिरों का निर्माण 11वीं और 12वीं शताब्दी के बीच माना जाता है, जब यह क्षेत्र परमार राजवंश के अधीन था। हालांकि इस क्षेत्र का सही इतिहास अब भी रहस्यों में घिरा हुआ है, लेकिन यह माना जाता है कि इन मंदिरों का निर्माण परमार राजाओं द्वारा किया गया था, जो उस समय इस क्षेत्र के शासक थे।

किराडू मंदिरों का नाम संभवतः “किराड” या “किराट” शब्द से उत्पन्न हुआ है, जो प्राचीन भारतीय इतिहास में एक आदिवासी समुदाय का नाम था। यह क्षेत्र कभी एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था और यहां की स्थापत्य कला इस बात की गवाही देती है कि उस समय यहां की कला और संस्कृति कितनी उन्नत थी।

मंदिरों की वास्तुकला और मूर्तिकला

किराडू मंदिरों की वास्तुकला खजुराहो के मंदिरों की याद दिलाती है। यहां कुल पांच मंदिर हैं, जिनमें से चार भगवान शिव को समर्पित हैं और एक विष्णु को। हालांकि इन मंदिरों में से अधिकांश अब खंडहर हो चुके हैं, लेकिन जो कुछ बचा है, वह भी अपनी उत्कृष्ट मूर्तिकला और वास्तुकला के लिए सराहनीय है।

मंदिरों की दीवारों पर की गई मूर्तिकला का काम अद्वितीय है। ये मूर्तियाँ विभिन्न धार्मिक, पौराणिक, और सांसारिक विषयों को दर्शाती हैं। खजुराहो की तरह, यहां भी कई मूर्तियाँ कामुक मुद्रा में हैं, जो उस समय की सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं का हिस्सा थीं। इसके अलावा, मंदिरों की दीवारों पर नृत्य, संगीत, और अन्य कला रूपों का चित्रण भी देखा जा सकता है। इन मूर्तियों में मानव आकृतियों के अलावा देवी-देवताओं, पशु-पक्षियों और अन्य पौराणिक पात्रों का भी सुंदरता से चित्रण किया गया है।

मुख्य मंदिर

किराडू के पांच मंदिरों में सबसे प्रमुख है “सोमेश्वर मंदिर,” जो शिव को समर्पित है। यह मंदिर अपने भव्य स्थापत्य और मूर्तिकला के लिए जाना जाता है। इस मंदिर का गर्भगृह, मंडप और शिखर आज भी स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इसके अलावा “सत्यमाता मंदिर” और “विष्णु मंदिर” भी यहां के महत्वपूर्ण मंदिरों में गिने जाते हैं।

सोमेश्वर मंदिर की खास बात इसका शिखर है, जो नगारा शैली में बना है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर बेहद जटिल और सुंदर मूर्तियों का काम किया गया है। इसके मंडप की छत और स्तंभों पर भी सुंदर नक्काशी की गई है, जो उस समय के कारीगरों की उत्कृष्टता का प्रमाण है।

किराडू को “राजस्थान का खजुराहो” क्यों कहा जाता है?

किराडू को “राजस्थान का खजुराहो” इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां की मूर्तिकला और स्थापत्य कला खजुराहो के मंदिरों से मिलती-जुलती है। दोनों स्थलों पर मंदिरों की दीवारों पर की गई नक्काशी में कामुकता और धार्मिकता का मिश्रण देखा जा सकता है। हालांकि खजुराहो का मंदिर समूह काफी विस्तृत और प्रसिद्ध है, किराडू का यह समूह भी अपनी विशिष्टता और खूबसूरती के कारण महत्वपूर्ण है।

खजुराहो की तरह, किराडू के मंदिर भी भारतीय स्थापत्य कला के अद्वितीय उदाहरण हैं, जो उस समय की सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति को दर्शाते हैं। हालांकि दोनों के बीच समय और भौगोलिक दूरी का अंतर है, लेकिन इन दोनों स्थलों की मूर्तिकला में जो साम्यता है, वह इन्हें एक ही धारा का हिस्सा बनाती है।

पर्यटन और संरक्षण

किराडू मंदिर राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक हैं, हालांकि यह स्थल उतना प्रसिद्ध नहीं है जितना कि राज्य के अन्य पर्यटन स्थल, जैसे कि जयपुर, उदयपुर, या जोधपुर। लेकिन जो भी पर्यटक यहां आते हैं, वे इन मंदिरों की भव्यता और स्थापत्य कला से मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। इस स्थल का आंशिक रूप से खंडहर हो जाना और भी इसे रहस्यमयी बनाता है।

हालांकि इन मंदिरों की वर्तमान स्थिति काफी चिंताजनक है। इनकी देखभाल और संरक्षण की दिशा में पर्याप्त कदम नहीं उठाए गए हैं, जिसके कारण यहां की मूर्तियाँ और स्थापत्य धीरे-धीरे नष्ट हो रहे हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इन मंदिरों को संरक्षित स्मारक घोषित किया है, लेकिन इसके बावजूद इनकी देखभाल में कमी नजर आती है। अगर समय रहते इन मंदिरों के संरक्षण की दिशा में कदम नहीं उठाए गए, तो यह धरोहर भविष्य में केवल इतिहास के पन्नों में ही सिमटकर रह जाएगी।

निष्कर्ष

किराडू के मंदिर न केवल राजस्थान की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, बल्कि यह भारतीय स्थापत्य कला के अद्वितीय उदाहरण भी हैं। “राजस्थान का खजुराहो” कहे जाने वाले इन मंदिरों की मूर्तिकला और वास्तुकला उस समय की समृद्ध कला और संस्कृति की गवाही देती है। हालांकि यह स्थल खंडहर में बदल चुका है, लेकिन इसकी भव्यता और सौंदर्य आज भी इसकी महानता की कहानी कहते हैं।

यह महत्वपूर्ण है कि इन मंदिरों का संरक्षण किया जाए ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस धरोहर का आनंद ले सकें और इसके माध्यम से हमारे इतिहास और संस्कृति से परिचित हो सकें। किराडू का यह मंदिर समूह न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारत के लिए एक गौरव का प्रतीक है, जिसे संरक्षित और सहेजने की आवश्यकता है।

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