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गाड़ियों में विज्ञापन चिपकाकर खड़ी की करोड़ों की कंपनी | Raghu Khanna CashUrDrive Success Story In Hindi

रघु खन्ना कैश योर ड्राइव की सफ़लता की कहानी, Raghu Khanna CashUrDrive Success Story In Hindi, CashUrDrive Ki Safalta Ki Kahani 

CashUrDrive Marketing Private Limited भारत की सबसे पहली on-wheel advertising company है, जो ब्रांड के प्रचार के लिए कार ब्रांडिंग, ऑटो ब्रांडिंग और कई अन्य मीडिया सॉल्यूशंस प्रदान करती है। जिसके संस्थापक और सीईओ रघु खन्ना है। कंपनी का मुख्यालय चंडीगढ़ में है और वर्तमान में डायरेक्टर रघु खन्ना और प्रवीण खन्ना हैं।

एक दिन गुवाहाटी के एयरपोर्ट जाते समय रघु खन्ना की नज़र ट्रक में लिखी कुछ पंक्तियों पर पड़ी और उन्हें कार तथा गाड़ियों में विज्ञापन के जरिए ब्रांड्स के प्रचार का आइडिया आया। कॉलेज के बाद महज ₹20,000 के पूंजी निवेश से रघु खन्ना ने CashUrDrive Company प्रारंभ की और आज उनका टर्न ओवर ₹32 करोड़ है। एक युवा लड़़का कैसे लिख पाया अपनी सफलता की कहानी? आइए जानते हैं :

Raghu Khanna CashUrDrive Success Story In Hindi

रघु खन्ना का जन्म शिमला में हुआ। उनके पिता हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर हैं और माता गृहणी। उनकी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा एडवर्ड स्कूल शिमला से हुई।

प्रारंभ में रघु की पढ़ाई की तरफ अधिक दिलचस्पी नहीं थी। उनकी दिलचस्पी डांस और एक्स्ट्रा करिकुलर एक्टिविटी में अधिक थी। इसलिए क्लास में अक्सर वे पीछे की बेंच में बैठा करते थे। हालांकि उनका बिजनेस माइंड बचपन से ही था। 

जब वे कक्षा पांचवीं में थे, तब दीवाली के समय मोहल्ले के बच्चों के साथ मिलकर उन्होंने दिया बेचने का प्लान बनाया। उन्होंने एक गमले बनाने वाले लड़के को पकड़ा और उससे ₹1 प्रति दिया के हिसाब से दिए बनवाए। उन दियों को मोहल्ले में ₹1.5 प्रति दिया के हिसाब से बेच दिया। जो पैसे उन्होंने कमाए, उससे उन्होंने दोस्तों के साथ आइसक्रीम की पार्टी की और क्रिकेट की बॉल खरीदी।

इस तरह उनका दिमाग तेज तो था, लेकिन वे पढ़ाई में उसका इस्तेमाल नहीं कर रहे थे। नतीजतन छटवीं कक्षा में वे इतिहास में दो अंकों से फेल हो गए। तब उनकी टीचर ने उन्हें समझाया कि मैं तुम्हें कृपांक देकर पास कर सकती हूं, लेकिन फिर तुम्हें उसकी आदत लग जायेगी, क्यों ना तुम मन लगाकर पढ़ना शुरु कर दो।

टीचर की बात का गहरा असर रघु पर हुआ और उन्होंने गंभीर होकर पढ़ना शुरू कर दिया। दसवीं कक्षा अच्छे नबरों से उत्तीर्ण करने के बाद वे चंडीगढ़ चले गए और वहां के स्कूल में दाखिला ले लिया। स्कूल की पढ़ाई के साथ साथ वे आईआईटी और जेईई की तैयारी करने लगे। उन्हें आईआईटी, गुवाहाटी में डिजाइन प्रोग्राम के बैचलर कोर्स में दाखिला मिल गया।

कॉलेज में पढ़ाई करने के साथ ही वो फिर से जेईई की तैयारी करने लगे। दूसरी बार उन्हें आईआईटी गुवाहाटी में ही सिविल इंजीनियरिंग ब्रांच मिली। उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग के साथ फिर से उसी कॉलेज में प्रथम वर्ष में दाखिला ले लिया, जहां वे डिजाइन प्रोग्राम ब्रांच में दूसरे वर्ष में होते। उन्होंने कड़ी मेहनत से पढ़ाई की और अगले साल ब्रांच बदलकर सिविल इंजीनियरिंग से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में आ गए।

कॉलेज के दूसरे वर्ष वे कॉलेज अथॉरिटी से निवेदन कर रोम यूनिवर्सिटी में इंटर्नशिप के लिए चले गए। वहां उनका प्रोजेक्ट ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार करना था, जो आंख की पुतलियों के संचालन के आधार पर विकलांग लोगों को कंप्यूटर का उपयोग करने में सहायक हो।

रोम से इंटर्नशिप पूरी करने के बाद वे भारत वापस आए। कॉलेज के अंतिम वर्ष में कैम्पस इंटरव्यू में उन्हें “सैमसंग” कंपनी में जॉब मिल गई। हालांकि वे नौकरी न कर लंदन स्कूल ऑफ कॉमर्स या जॉर्जिया टेक में एमएस करने की योजना पर भी विचार कर रहे थे।

उसी दौरान उन्हें हेपेटाइटिस बी हो गया और वे इलाज के लिए अपने घर शिमला जाने के लिए निकले। एयरपोर्ट जाते समय उनकी नज़र एक ट्रक के पीछे लिखी कुछ पंक्तियों पर पड़ी। तब उन्हें यह विचार सूझा कि विज्ञापन एजेंसी कार या ट्रक का इस्तेमाल अपने विज्ञापनों को डिस्प्ले करने के लिए कर सकती हैं। ये एक अच्छा बिजनेस आइडिया था। शिमला में कुछ समय रहकर ठीक होने के बाद वापस गुवाहाटी पहुंचकर उन्होंने अपने दोस्तों से अपने बिजनेस आइडिया के बारे में बात की। कुछ ने सुझाव दिया कि ऑरकुट में कम्युनिटी शुरू कर इस बारे में लोगों की राय लेना चाहिए। रघु ने ऑरकुट में कम्युनिटी खोली और पूछा कि क्या आप अपनी कार पर विज्ञापन लगाकर कमीशन लेना चाहेंगे। उन्हें 40 लोगों की सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली और वे इस बिज़नेस आइडिया के बारे में गंभीरता से सोचने लगे।

कॉलेज समाप्त होने के बाद वे सैमसंग की नौकरी और जॉर्जिया टेक में एमएस के विचारों के साथ ही अपने बिजनेस आइडिया में भी उलझे हुए थे। तब उनके चचेरे भाई ने सलाह दी कि एमएस करके वापस आने के बाद भी बिजनेस ही करना है, तो अभी से शुरुवात क्यों नहीं? बात रघु को जंच गई। उन्होंने सैमसंग में नौकरी और एमएस की पढ़ाई दोनों का विचार त्यागकर अपने बिजनेस आइडिया पर काम करने का मन बना लिया।

उन्होंने एक वेबसाइट “ब्रांड ऑन व्हील” बनाई और उसका अखबारों के जरिए प्रचार करने लगे। हिंदुस्तान टाइम्स न्यूज पेपर ने उनकी वेबसाइट का रेफरेंस देकर उनके बिजनेस के बारे में विस्तार से छापा कि कैसे कार में विज्ञापन देकर कमीशन पर अच्छी कमाई की जा सकती थी।

तीन दिनों में ही उनकी वेबसाइट में 1500 कार मालिकों ने रजिस्ट्रेशन करवाया और साथ ही 22 विज्ञापन एजेंसी ने विज्ञापन के लिए संपर्क किया।

23 अगस्त 2008 को रघु ने ब्रांड ऑन व्हील के नाम से प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की शुरुवात कर दी। उनके 4 दोस्त भी उनके सहभागी बने। बाद में उन्होंने अपनी कंपनी का नाम बदलकर कैश योर ड्राइव (CashUrDrive) कर लिया, क्योंकि पहला नाम दक्षिण अफ्रीका की कंपनी ब्रांड ऑन व्हील से मिलता जुलता था।

सबसे पहला ग्राहक उन्हें लुधियाना की ‘बॉने बेकरी ‘ का मिला। ऑर्डर तो मिल गया, लेकिन अब समस्या ये थी कि कार पर विज्ञापन लगाया कैसे जाए। उन्होंने बाज़ार में विनायल के बारे में पता किया, फिर कार में धूप रोकने वाली फिल्म लगाने वाले लोगों से संपर्क किया, लेकिन उन लोगों के लिए भी ये काम नया था। उन्होंने जो कीमत बताई, वो काफ़ी अधिक थी। रघु ने खुद की कार पर विनायल लगाने की कोशिश की, पर नाकाम रहे। तब उन्होंने शिमला में फैंसी स्टीकर लगाने वाले एक व्यक्ति को पकड़ा और उसने सही तरीके से कार पर स्टीकर लगा दिया। इस प्रकार पहला ऑर्डर पूरा करने के बाद रघु का चल निकला।

उन्होंने अपने बिजनेस को और प्रचारित प्रसारित करने के उद्देश्य से बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार में एक प्रेस विज्ञप्ति छपवाई, जिसने कई ब्रांड्स को कैश योर ड्राइव की तरफ आकर्षित किया।

अक्टूबर 2008 में रघु को रिलायंस म्यूचुअल फंड के द्वारा 1 महीने के लिए 75 कारों का ऑर्डर दिया, फिर टाटा इंडिकॉम ने 3 महीनों के लिए 125 कारों का। चंडीगढ़, शिमला, पटियाला, लुधियाना जैसे शहरों में उनका काम चलने लगा। कार मालिक पंजीकरण करवाने लगे। रघु उन्हें ₹2000 – ₹3000 प्रतिमाह की दर से कमीशन का भुगतान करते। लेकिन अब भी उनकी उम्मीद के मुताबिक विज्ञापनदाता उनसे करार नहीं कर रहे थे।

दिसंबर 2008 में उन्हें व्यापार बढ़ाने के लिए दिल्ली शिफ्ट होने का विचार सूझा और वे फिर से अपने ब्रांड का प्रचार प्रसार करने में जुट गए। उन्हें एडिडास, मेरू कैब्स, ऑटोग्राफिक्स डिजिटल जैसे ब्रांड्स मिले। जनवरी 2009 तक कैश योर ड्राइव को 12 हजार कार मालिकों का पंजीकरण मिल चुका था। अब पूंजीपति भी उनमें दिलचस्पी दिखाने लगे थे।

एक बड़ा मौका उन्हें तब मिला, जब उनकी मुलाकात विमल अंबानी (धीरूभाई अंबानी के भतीजे, जिनके नाम से विमल ब्रांड के कपड़े बिकते हैं।) से हुई। उनकी कंपनी विनायक शीट्स बनाती थी। कैश योर ड्राइव को उनकी गाड़ियों में विनायल चिपकाने का काम मिल गया। इसके अलावा लेज़ चिप्स, पेप्सी, पिज़्ज़ा हट, डोकोमो आदि के भी ऑर्डर प्राप्त हुए।

अप्रैल 2009 तक उन्होंने ₹21 लाख का राजस्व कमाया, दिसंबर 2009 तक ₹86 लाख का। इस तरह उनकी कंपनी प्रगति करती गई।

वर्ष 2014 में वे नोएडा शिफ्ट हो गए और वहां से अपनी कंपनी का संचालन करने लगे। उतार चढ़ावों के साथ उनकी कंपनी लगातार प्रगति करती रही।

वर्ष 2017 में उन्होंने Tabverts कंपनी से साझेदारी की, जो कैब में टैबलेट एडवरटाइजिंग प्रदान करती है। वर्ष 2018 में उन्होंने Billboard Taxi से 48 मिलियन डॉलर की डील है। यह कंपनी कैश योर ड्राइव को एडवर्टाइडिंग हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर प्रदान करती है। वर्ष 2020 में उन्होंने uber cabs से पार्टनरशिप की।

आज उनकी कंपनी से 500 से भी अधिक कस्टमर्स जुड़े हुए हैं, जिनमें स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, सिटी बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, देना बैंक, यूको बैंक, एलआईसी ऑफ इंडिया, यूनाइटेड इंश्योरेंस, नेशनल इंश्योरेंस, सबवे, पिज्जा हट, रीबॉक, टाइम्स नाउ, गूगल, पेप्सी, कोक, नेस्ले, आईटीसी, सोमानी, विमल, सनबर्न (ईवेंट) और वोडाफोन, एयरटेल, रिलायंस जैसी कंपनियां सम्मिलित हैं।

महज ₹20,000 के निवेश से आरंभ हुई कंपनी का रेवेन्यू आज तकरीबन ₹32 करोड़ है।

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