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बर्तन धोने वाले ने कैसे बनाई 30 करोड़ की कंपनी? | Dosa Plaza Owner Prem Ganapathy Success Story

इस पोस्ट में हम Prem Ganapathy Dosa Plaza Biography Success Story In Hindi शेयर कर रहे हैं।

Prem Ganapathy Dosa Plaza

प्रेम गणपति कुछ कर गुजरने का सपना लेकर मुंबई आये थे. लेकिन मुंबई में कदम रखते ही उन्होंने स्वयं को खाली हाथ पाया. हिंदी फिल्मों की तरह मुंबई रेलवे स्टेशन पर उनका सारा पैसा और सामान चोरी हो गया. जेब में घर जाने के लिए टिकट के पैसे तक न बचे.

उस दिन वे स्वयं को बेहद लाचार महसूस कर रहे थे. लेकिन उनका आत्मविश्वास नहीं डिगा. उन्होंने निश्चय किया कि चाहे जो भी हो, मैं हार नहीं मानूंगा और इस शहर से खाली हाथ नहीं लौटूंगा. यहीं रहकर कुछ करूंगा और अपना भविष्य बनाऊंगा. बेकरी और रेस्टोरेंट में बर्तन धोने के काम से शुरूवात कर आज वे फ़ास्ट फ़ूड चेन ‘डोसा प्लाज़ा’ (Dosa Plaza) के मालिक बन चुके हैं, जिसका सालाना टर्न ओवर ३० करोड़ रुपये है. 

बर्तन धोने वाला लड़का कैसे चढ़ पाया सफ़लता का ये सोपान? कैसे तय किया उसने फ़र्श से अर्श तक का सफ़र? आइये जानते हैं Prem Ganapathy Dosa Plaza Success Story In Hindi में  :

Prem Ganapathy Dosa Plaza Success Story 

Table of Contents

प्रेम गणपति का जन्म और प्रारंभिक जीवन | Prem Ganpathy Birth & Early Life

तमिलनाडु के तूतीकोरन जिले में स्थित गाँव नागलपुरम के एक गरीब परिवार में जन्मे प्रेम गणपति (Prem Ganpathy) के परिवार में माता-पिता, उन्हें सम्मिलित कर ६ भाई और १ बहन थी. पिता कोयले का व्यवसाय किया करते थे. किंतु प्रेम गणपति के जन्म के पहले ही उन्हें व्यवसाय में बड़ा घाटा उठाना पड़ा. फलस्वरूप व्यवसाय बंद हो गया और परिवार खेती-किसानी से होने वाली आय पर निर्भर हो गया.

गाँव के ही एक स्कूल में प्रेम गणपति की स्कूली शिक्षा प्रारंभ हुई, लेकिन दसवीं से आगे नहीं बढ़ पाई. परिवार की आर्थिक सहायता करने के उद्देश्य से उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी. उस समय उनके पिता और भाई चेन्नई में काम किया करते थे. वह भी काम की तलाश में चेन्नई चले गए और एक कॉफ़ी शॉप में काम करने लगे. कॉफ़ी शॉप के अलावा उन्हें जहाँ भी छोटा-मोटा काम मिलता, वे करते और होने वाली आमदनी गाँव भेज दिया करते थे.

प्रेम गणपति मुंबई पहुंचे | Prem Ganapathy Mumbai Life 

१९९० का वर्ष था और प्रेम गणपति (Prem Ganapathy) की उम्र १७ वर्ष थी. वह जिस कॉफ़ी शॉप में काम किया करते थे, उसके मालिक का एक रिश्तेदार मुंबई से आया हुआ था. उसने उन्हें मुंबई में १२०० रुपये की पगार पर अच्छी नौकरी का सपना दिखाया. उस समय उन्हें मिलने वाली पगार २५० रूपये के मुकाबले १२०० रुपये एक बड़ी रकम थी. वे तुरंत मुंबई जाने तैयार हो गए. उनका विचार था कि १२०० रुपये से शुरुवात कर वे अवश्य कुछ न कुछ अच्छा कर लेंगे और परिवार की अधिक मदद कर पायेंगे. उन्होंने उस व्यक्ति के साथ मुंबई (Mumbai) की राह पकड़ ली.

मुंबई स्टेशन पर सामान हुआ चोरी | Bad Luck In Mumbai 

मुंबई के बांद्रा रेल्वे स्टेशन पर पहुँचने पर उनके साथ वही हुआ, जो अक्सर हिंदी फिल्मों में हुआ करता है. मुंबई पहुँचकर उन्होंने देखा कि उनके सारे पैसे और सामान नदारत है और साथ ही वह व्यक्ति भी, जो उनसे नौकरी का वादा कर चेन्नई से मुंबई लाया था. उन्हें समझते देर न लगी कि उन्हें मुंबई लाने वाला व्यक्ति उन्हें झांसा देकर भाग गया है. पहने हुए कपड़ों के सिवाय उनके पास कुछ भी नहीं था. उन्होंने स्वयं को एक अजनबी शहर में निःसहाय खड़ा पाया.

मुंबई में उनकी कोई जान-पहचान नहीं थी. सबसे बड़ी मुश्किल ये थी कि उन्हें न तो हिंदी आती थी, न ही मराठी. चेन्नई वापस जाने के पैसे भी उनकी जेब में नहीं थे. एक तमिल व्यक्ति उनकी वस्तुस्थिति समझकर उन्हें समीप के एक मंदिर में ले गया और वहाँ लोगों से उनकी वापसी की टिकट के लिए पैसों की व्यवस्था करने मदद की गुहार लगाईं. लेकिन प्रेम गणपति ने वापस जाने से इंकार कर दिया. वे मुंबई जिस उद्देश्य से आये थे, उसे पूर्ण किये बिना वापस नहीं जाना चाहते थे. उन्हें यकीन थी कि यह शहर उन्हें कुछ न कुछ तो अवश्य देगा और इस तरह मुंबई में उनके एक नए जीवन की शुरुवात हो गई.

बर्तन धोने से की मुंबई में काम की शुरूवात | Initial Work In Mumbai

थोड़े प्रयासों के बाद उन्हें एक बेकरी में काम मिल गया, जहाँ वे बर्गर व पिज़्ज़ा के ट्रे तथा ओवन आदि धोया करते थे. वहाँ ६ माह काम करने के बाद उन्हें वाशी इलाके के सतगुरु होटल में काम मिल गया. वहाँ भी उनका काम बर्तन धोने का था. चूंकि वे दसवीं पास थे, इसलिए उन्होंने होटल के मालिक से वेटर या टी-बॉय का काम देने की गुज़ारिश की. किंतु होटल का मालिक केवल लोकल व्यक्ति को ही वेटर या टी-बॉय का काम दिया करता था. एक मद्रासी लड़के को उसने यह काम देने से मना कर दिया. विवशतावश प्रेम गणपति बर्तन धोने का ही काम करते रहे.

उनकी किस्मत तब पलटी, जब उस बेकरी के बगल में एक नया होटल ‘प्रेम सागर’ खुला और उसके मालिक ने उन्हें अपने होटल में टी-बॉय के रूप में रख लिया. यह काम बर्तन धोने से बेहतर था, क्योंकि बाहर चाय लेकर जाने में १०% कमीशन अतिरिक्त मिलता था और साथ ही लोगों से जान-पहचान भी बढ़ती थी. अपनी मेहनत, लगन और अच्छे व्यवहार से उन्होंने ग्राहकों का दिल जीत लिया. जहाँ अन्य टी-बॉय प्रतिदिन ३०० रुपये की चाय बेच पाते थे, वहीं प्रेम गणपति १००० रुपये की चाय बेचते थे. होटल का मालिक भी उनसे खुश था और ग्राहक भी.

साझेदारी में शुरू की चाय की दुकान, लेकिन मिला धोखा | Prem Ganapathy Tea Stall Business 

एक दिन एक ग्राहक ने उनके समक्ष एक प्रस्ताव रखा. वह मुंबई के वाशी इलाके में एक चाय की दुकान खोलना चाहता था. उसने प्रेम गणपति के समक्ष ५०% का भागीदार बनने का प्रस्ताव रखा. पूंजी-निवेश वह स्वयं करने वाला था, प्रेम गणपति को बस दुकान संभालना था. प्रेम गणपति ने खुशी-ख़ुशी यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. एक किराना दुकान के पीछे चाय की यह दुकान खुली और पहले ही दिन से अच्छा व्यवसाय करने लगी. कुछ ही माह में मुनाफ़ा ८००० से १०००० रुपये प्रतिमाह छूने लगा? यह देख दुकान का मालिक लालच में आ गया और उसे मुनाफ़ा बांटने से इंकार कर प्रेम गणपति को निकाल बाहर किया.

प्रेम गणपति फिर रास्ते पर आ गए. अपने साथ हुए इस धोखे से वे दु:खी अवश्य हुए, किंतु निराश नहीं. उन्होंने सकारात्मक पहलू की ओर ध्यान दिया. उन्हें समझ आ चुका था कि उनमें दुकान चलाने की क्षमता है. इसलिए किसी अन्य के यहाँ काम करने के स्थान पर अपनी स्वयं की दुकान खोलने के इरादे से वे गाँव चले गए. वहाँ एक रिश्तेदार से कुछ पैसे उधार लेकर अपने छोटे भाई के साथ मुंबई वापस आ गये.

लगभग २०,००० की पूंजी लगाकर उन्होंने सड़क किनारे अपना ख़ुद का टी-स्टाल लगा लिया. धंधा ठीक चल रहा था, किंतु पास के हाउसिंग सोसाइटी के लोग अक्सर उन्हें परेशान किया करते थे. रोज़-रोज़ की झिक-झिक से तंग आकर आखिरकार उन्होंने अपनी टी-स्टाल वहाँ से हटा ली और एक हाथ गाड़ी लेकर बस स्टैंड के समीप चाय बेचने लगे. किंतु यह भी अधिक दिनों तक चल न सका.

सड़क किनारे स्टाल लगाकर बेचने लगे इडली-डोसा | Prem Ganapathy Idli Dosa Stall

प्रेम गणपति एक अलग ही मिट्टी एक बने थे. धोखा, परेशानी, आर्थिक टंगी, असफलताओं से वे टूटने वाले नहीं थे. इस बार उन्होंने वाशी सेक्टर १७ में एक जगह ढूंढी और एक साउथ इंडियन स्टाल लगा ली. साउथ इंडियन स्टाल तो उन्होंने लगा ली थी, लेकिन उन्हें न तो इडली बनानी आती थी, न ही डोसा और न ही कोई अन्य दक्षिण भारतीय व्यंजन. दूसरों को देखकर और उनसे सीखकर वे इडली-डोसा बनाने लगे. प्रारंभ में कई गलतियाँ हुई, फिर वे इसमें माहिर हो गए और उनका स्टाल अच्छा चलने लगा.

उनके छोटे से स्टाल की सफलता का कारण यह था कि वहाँ ४ रूपये में इडली और १० रूपये में डोसा मिलता थे, जो अन्य रेस्तरां के मुकाबले बहुत सस्ता था. उनका स्टाल साफ़-सुथरा रहता था. वह और उनके भाई अन्य डोसा वालों की तरह लूंगी न पहनकर पेंट-शर्ट पहना करते थे और सिर पर बैंड लगाया करते थे. वहाँ की साफ़-सफ़ाई देखकर हर वर्ग के लोग वहाँ आने लगे और वहाँ बने इडली-डोसा का स्वाद लेने लगे. १९९२ से १९९७ तक उनके व्यवसाय ने अच्छी प्रगति कर ली थी. उन्हें प्रतिमाह लगभग २०,००० का मुनाफा होने लगा था.

दोसा प्लाज़ा का इतिहास और शुरुआत |Prem Ganapathy Dosa Plaza History

१९९७ तक वे कुछ लाख रुपयों की बचत कर चुके थे, जिससे उन्होंने अपने भाई के लिए चेन्नई में एक किराना दुकान खोल दी. चाहते तो वह भी वहाँ जा सकते थे, किंतु वापस जाने के स्थान पर एक बड़ा रिस्क लेते हुए उन्होंने ५०,००० रुपये डिपाजिट देकर और ५००० रूपये के किराये पर वाशी स्टेशन के पास एक दुकान किराये पर ले ली और वहाँ ‘प्रेम गणपति प्रेम सागर दोसा प्लाज़ा’ (Prem Ganpathy Prem Sagar Dosa Plaza) के नाम से दक्षिण भारतीय व्यंजनों की दुकान खोल ली.

उस समय प्रेम गणपति किराये के जिस मकान में रहा करते थे, उसमें एन.आई.आई.टी. का एक छात्र भी उनके साथ रहता था. उसने उन्हें कंप्यूटर चलाना सिखाया, इंटरनेट का प्रयोग सिखाया, उनकी ई-मेल आई.डी. बनाकर दी. उसके बाद समय मिलने पर वह सायबर कैफे जाकर इंटरनेट सर्फ़ करने लगे.

इंटरनेट से उन्हें कई व्यंजनों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई. उन्होंने मैकडोनाल्ड, पिज़्ज़ा हट्स (Pizza Huts) आदि के बारे में पढ़ा और फ़ूड बिज़नस के बारे में जाना. फिर उन्होंने ‘प्रेम गणपति प्रेम सागर डोसा प्लाज़ा  (Prem Ganapathy Prem Sagar Dosa Plaza) की वेबसाइट भी बनाई, ताकि लोगों को उनके डोसा प्लाज़ा (Dosa Plaza) के बारे में जानकारी मिल सके और उनके ग्राहकों की संख्या में इजाफा हो सके.

उनके दक्षिण भारतीय व्यंजन तो लोकप्रिय थे ही, किंतु लोग और अधिक विविधता की मांग करने लगे. इसलिए प्रेम गणपति ने ‘डोसा प्लाजा’ के पास ही एक ‘चायनीज़ प्लाज़ा‘ भी खोल लिया. उन्हें चायनीज़ व्यजनों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, उसके सही इंग्रेडिएंट उन्हें पता नहीं थे और ऊपर से उस इलाके में पहले से ही ‘अलीबाबा चायनीज़‘ नाम की चायनीज़ व्यंजनों की दुकान थी. जिस कारण उन्हें घाटा होने लगा और उन्हें तीन-चार माह के भीतर ही ‘चायनीज़ प्लाजा’ बंद करना पड़ा.

साउथ इंडियन और चायनीज़ के फ्यूज़न से बनाने लगे नई डिश | Dosa Plaza South Indian Chinese Food Fusion Dish 

लेकिन इस अनुभव से प्रेम गणपति थोड़ा बहुत चायनीज़ व्यंजनों के बारे में सीख चुके थे. इसके बाद उन्होंने नए प्रयोग करना प्रारंभ किया और डोसा में चायनीज़ फिलिंग के साथ सेजवान डोसा, मंचूरियन डोसा, पनीर चिली डोसा आदि व्यंजन बनाने लगे. एन-आई.टी. कॉलेज के छात्र हमेशा ही उनके डोसा प्लाज़ा (Dosa Plaza)  में आते रहते थे. वे उन्हें चखकर बताते कि साउथ इंडियन और चायनीज़ का उनका फ्यूज़न स्वादिष्ट है या नहीं. धीरे-धीरे लोगों को उनका बनाया चायनीज़ दोसा पसंद आने लगा और यह उनके मेनु में शामिल हो गया.

प्रेम गणपति दोसा प्लाज़ा का ट्रेडमार्क | Prem Ganapathy Dosa Plaza Trademark 

कुछ समय बाद प्रेम गणपति के डोसा प्लाज़ा (Dosa Plaza) के नाम जैसे कई और डोसा प्लाजा खुलने लगे. तब उन्होंने ट्रेडमार्क और कॉपी राईट के बारे में सोचा और ‘डोसा प्लाज़ा’ (Dosa Plaza) ट्रेडमार्क रजिस्टर्ड करवा लिया. साथ ही अपने २७ व्यंजनों का भी कॉपीराइट व ट्रेडमार्क करवाया.

अब धीरे-धीरे वे पूरी तरह से व्यवसायिक होने लगे थे. इसलिए विज्ञापन और प्रचार की ओर भी उनका ध्यान गया. वेबसाइट तो उन्होंने पहले से ही बना ली थी, अब उन्होंने लोगों को आकर्षित करने के उद्द्देश्य से बड़े-बड़े बैनरों का सहारा लिया. शहर में कई जगहों, स्कूल-कॉलेजों में अपना स्टाल लगाया, ताकि लोग उनके ‘डोसा प्लाज़ा’ के बारे में जान सके और अधिक से अधिक लोगों के मध्य उनका डोसा प्लाज़ा मशहूर हो सके. उनकी मेहनत रंग लाई और वर्ष २००२ तक उनका टर्न ओवर १० लाख रुपते/प्रति माह को छूने लगा. तब तक उनके दो आउटलेट्स खुल चुके थे, जहाँ १५ व्यक्तियों का स्टाफ था.

मुंबई के सेण्ट्रल मॉल में खोला डोसा प्लाजा का काउंटर | Munbai Central Mall Dosa Plaza Franchise Outlet 

प्रेम गणपति और प्रगति करना चाहते थे. उस समय मुंबई का पहला मॉल निर्माणाधीन था. वहाँ की टीम ‘डोसा प्लाज़ा’ (Dosa Plaza) में लंच करने आया करती थी. उसके प्रोजेक्ट मेनेजर से प्रेम गणपति की अच्छी दोस्ती हो गई. उसने उन्हें मॉल के फ़ूड ज़ोन में एक काउंटर लेने की सलाह दी., जिसके लिए उन्हें ३ लाख से अधिक का पूँजी निवेश करना था.

प्रेम गणपति ने किसी निर्णय पर पहुँचने के पहले जब उन्होंने परिवारजनों से सलाह की, तो सबने उन्हें इतना बड़ा रिस्क लेने से मना किया. लेकिन सबकी राय के विरूद्ध जाते हुए प्रेम गणपति ने मॉल में काउंटर खोलने का निर्णय लिया. दोस्तों, जान-पहचान वालों से उधार लेकर उन्होंने पूँजी जुटाई और मॉल के पूरे होने का इंतजार करने लगे. २००३ में जिस दिन मॉल शुरू हुआ, उस दिन से ही ‘डोसा प्लाजा’ लोकप्रिय हो गया. पहले ही माह उसका टर्न ओवर ६ लाख के ऊपर पहुँच गया.

प्रारंभ की चेन फ्रेंचाइजी और अंतराष्ट्रीय स्तर पर दिलाई दोसा को पहचान | Dosa Plaza International Outlet Franchise Chain

सेण्टर मॉल की सफलता के बाद एक अन्य अवसर प्रेम गणपति के सामने आया. बिलिंग मशीन सप्लाई करने वाली कंपनी ने उनसे थाणे के ‘साइन वंडर मॉल’ में डोसा प्लाज़ा का आउटलेट खोलने की फ्रेंचाइजी लेने की इच्छा ज़ाहिर की. उस समय तक प्रेम गणपति को फ्रेंचाइजी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. जानकारी प्राप्त करने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि विश्व के कई फ़ास्ट फ़ूड बिज़नेस चेन फ्रेंचाइजी पर चलते हैं. उन्होंने भी ‘डोसा प्लाज़ा’ (Dosa Plaza) की फ्रेंचाइजी प्रदान करना प्रारंभ किया. इसे उन्हें ६-७% की रॉयल्टी प्राप्त होने लगी.

अपने व्यवसाय का उन्होंने एक सिस्टम बनाया. उन्होंने बिलिंग, इन्वेंट्री और अन्य ऑपरेशन के लिए एक सेन्ट्रलाइज़ सॉफ्टवेर तैयार करवाया, व्यवसाय में एक भागीदार शामिल किया और बिज़नस डेवलपमेंट, ऑटोमेशन, मार्केटिंग, कास्टिंग व अन्य ऑपरेशन के लिए डिपार्टमेंट सेट-अप किये गये. हर डिपार्टमेंट को मॉनिटर करने के लिए ऑपरेशन मैनेजर रखे गए. इस तरह उनके व्यवसाय का पूर्ण व्यवसायीकरण हो गया.

प्रेम गणपति दोसा प्लाज़ा टर्नओवर नेटवर्थ| Prem Ganapathy Dosa Plaza Annual Turnover Networth 

इसके बाद प्रेम गणपति और उनके डोसा प्लाज़ा (Dosa Plaza) ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और उन्नति करते गए. आज डोसा प्लाज़ा का वार्षिक टर्न ओवर ३० करोड़ है.

प्रेम गणपति दोसा प्लाज़ा आउटलेट्स | Prem Ganapathy Dosa Plaza Outlets

भारत में इसके ७८ आउटलेट्स (Outlets) हैं. साथ ही संयुक्त अरब अमीरात (दुबई और शारजाह), न्यूज़ीलैंड और ओमान जैसे देशों में भी डोसा प्लाज़ा ने अपना विस्तार कर आउटलेट्स खोल रखे हैं.

अपने दृढ़ निश्चय, मेहनत, लगन, जुझारूपन, नया सीखने की ललक के बल पर वे आज उस मुकाम पर हैं, जहाँ से वे तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ते जा रहे हैं. प्रेम गणपति की सफ़लता हमें प्रेरणा देती है कि जीवन में चाहे कितना ही मुश्किल समय क्यों न सामने खड़ा हो, हौसला और आत्मविश्वास हमेशा बनाकर रखना चाहिए. सफ़लता अवश्य कदम चूमेगी.

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