कुकुरदेव मंदिर, इस अनोखे मंदिर में होती है कुत्ते की पूजा

Kukurdev Temple History & Story In Hindi : दोस्तों, आपने देवी-देवताओं के कई मंदिरों के बारे में सुना होगा, वहाँ दर्शन करने गए भी होंगे और पूजा-आराधना में भी सम्मिलित हुए होंगे. लेकिन क्या कभी ऐसे मंदिर के बारे में आपने कल्पना की है, जो देवी-देवताओं को नहीं बल्कि कुत्ते को समर्पित है.

जी हाँ दोस्तों, आज हम आपको जिस मंदिर के बारे में जानकारी दे रहे हैं, वो एक कुत्ते की स्मृति में बनाया गया है. इस मंदिर में कुत्ते की प्रतिमा स्थापित है, जिसकी पूजा की जाती हैं. लोगों की ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में आकर दर्शन करने से कुकुर-खांसी नहीं होती और कुत्ता नहीं काटता. ये माना जाता है कि यहाँ आने से कुकुरखांसी ठीक हो जाती हैं और कुत्ते का काटा हुआ ठीक हो जाता है.

यह मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है – कुकुरदेव मंदिर (Kukurdev Temple). आइये विस्तार से जानते हैं इस मंदिर के बारे में :

Kukurdev Temple Chhattisgarh History In Hindi
Kukurdev Temple Chhattisgarh | Image Source : youngisthan.in

कुकुरदेव मंदिर का निर्माण एवं स्थापत्य (Kukurdev Temple Construction & Artichecture)

कुकुरदेव मंदिर (Kukurdev Temple) छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग जिले में बलौद से लगभग ६ किलोमीटर दूर खपरी गाँव में स्थित है. यह एक पूर्वमुखी मंदिर है.   

इतिहासकारों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण फणी नागवंशियों राजाओं के द्वारा  १४-१५ वीं शताब्दी में करवाया गया था. इस मंदिर के गर्भगृह में एक शिवलिंग भी स्थापित है. मंदिर के प्रांगण में कुत्ते के प्रतिमा स्थापित है. जैसे अन्य मंदिरों में शिव के साथ उनके वाहन नंदी की पूजा की जाती हैं, वैसे ही इस मंदिर में कुत्ते की पूजा की जाती हैं.

कुकुरदेव मंदिर (Kukurdev Temple) में अन्य प्रतिमायें भी स्थापित हैं, जिनमें एक ही पत्थर पर निर्मित २ फुट ऊँची गणेश जी और राम, लक्ष्मण व शत्रुघ्न की प्रतिमायें प्रमुख हैं.

कुकुरदेव मंदिर २०० किलोमीटर के दायरे तक विस्तृत हैं. मंदिर प्रवेश द्वार के दोनों ओर कुत्ते की मूर्ति लगी हुई हैं. मंदिर के गुंबद और बाह्य दीवालों पर नाग की आकृति उकेरी हुई हैं. मंदिर में ततकालीन शिलालेख भी हैं, जिन पर बंजारों की बस्ती, चाँद-सूरज और तारों की आकृति बनी हुई है.

Kukurdev temple Chattisgarh History & Story In Hindi
Kukurdev temple | Image Source : youngisthan.in

कुकुरदेव मंदिर की ऐतिहासिक कहानी (Kukurdev temple Historical Story)

कुकुरदेव मंदिर (Kukurdev Temple) के स्थापना की कहानी बड़ी ही रोचक है. यह वास्तव में मंदिर न होकर एक स्मारक है. यहाँ के निवासियों के द्वारा सुनाई कहानी के अनुसार इस स्थान पर बंजारों बस्ती हुआ करती थी. उन्हें में से एक बंजारे का नाम मालीघोरी था, जिसने एक कुत्ता पाला हुआ था. बंजारे को वह कुत्ता बहुत प्रिय था.

एक वर्ष उस क्षेत्र में भयंकर अकाल पड़ने पर बंजारे ने अपना कुत्ता साहूकार के पास गिरवी रख कर्ज कर्ज ले लिया. उसके बाद से वह कुत्ता साहूकार के घर पर रहने लगा और उसके घर की रखवाली करने लगा.

एक रात साहूकार ने घर चोरी हुई. चोरों ने चुराया हुआ सामान गाँव के ही तालाब के पास छुपा दिया. कुत्ते ने चोरों को वह सामान छुपाते हुए देख लिया था. अगले दिन वह साहूकार को उस स्थान पर ले गया और इस तरह साहूकार को अपना सामान वापस मिल गया.

Kukurdev Temple Chhattisgarh
Dog Is Worshiped In Kukurdev Temple | Image Source : youngisthan,in

कुत्ते की वफ़ादारी देख साहूकार बहुत प्रसन्न हुआ. उसने निर्णय लिया कि वह कुत्ते को आज़ाद कर उसके मालिक बंजारे को वापस भेज देगा. एक पत्र में उसने अपने घर में हुई चोरी की घटना और कुत्ते की वफ़ादारी के बारे में पूरा विवरण लिखा और उसे कुत्ते के गले में बांधकर बंजारे के पास भेज दिया.

जब कुत्ता बंजारे के पास पहुँचा, तो उसके इस तरह वापस आ जाने पर बंजारा बहुत क्रोधित हुआ. उसने कुत्ते के गले में लटका पत्र देखा ही नहीं और उसे लकड़ी से पीट-पीटकर मार डाला.

कुत्ते के मर जाने के बाद बंजारे की दृष्टि साहूकार के पत्र पर पड़ी, जो कुत्ते के गले में लटका हुआ था. पत्र पढ़कर बंजारा आत्मग्लानि से भर उठा. उसने अपने किये पर बहुत पछतावा हुआ.

अपने स्वामिभक्त कुत्ते की स्मृति में उसने उसकी समाधि मंदिर के प्रांगण में ही बना दी. बाद में किसी ने कुत्ते की प्रतिमा भी वहाँ स्थापित कर दी. आज यह मंदिर ‘कुकुरदेव मंदिर’ के नाम से प्रसिद्ध हैं.  

मंदिर के सामने सड़क के पार से ‘मलिधोरी गाँव‘ शुरू होता है, ज्जिसका नामकरण मलिधोरी बंजारे के नाम पर किया गया है.

धार्मिक आस्था (Religious Belief)

इन मंदिर में आने वाले लोगों का ऐसा विश्वास है कि जिसे कुत्ते ने कटा हो, वह यहाँ आकर ठीक हो जाता है. हालांकि इसका इलाज़ यहाँ नहीं होता, न ही किसी के ठीक होने के प्रमाण हैं. लेकिन फिर भी अपने विश्वास के कारण लोग यहाँ आते हैं.

Kukurdev Temple Board | Image Source : bhaskar.com

“कुकुरदेव मंदिर” में सावन के महीने और महाशिवरात्रि में भक्तगणों की भीड़ होती हैं.

मंदिर के सामने लगे बोर्ड को पढ़कर भी लोग इस मंदिर की ओर आकर्षित होते हैं और कौतूहलवश यहाँ आते हैं. उचित रख-रखाव न हो पाने के कारण धीरे-ध्रीरे यह मंदिर जर्जर होता जा रहा है.  

कुकुरदेव मंदिर कैसे पहुँचे? (How to Reach Kukurdev Temple?)

रेलमार्ग – दुर्ग रेल्वे स्टेशन खपरी गाँव का निकटतम रेल्वे स्टेशन है. यहाँ से खपरी गाँव बस या टैक्सी से पहुँचा जा सकता है.

वायुमार्ग –  कुकुरदेव मंदिर पहुँचने के लिए निकटतम एयरपोर्ट रायपुर का माना एयरपोर्ट है. जहाँ से ट्रेन या बस द्वारा दुर्ग पहुँचकर टैक्सी/बस से खपरी गाँव जाया जा सकता है.

सड़क मार्ग – दुर्ग से बस या टैक्सी द्वारा खपरी गाँव स्थित कुकुरदेव मंदिर पहुँचा जा सकता है.

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