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इस अनोखे गाँव में लोग एक-दूसरे को नाम से नहीं, बल्कि सीटी बजाकर बुलाते हैं | India’s Whistling Village

Kongthong Whistling Village Of India In Hindi

Kongthong Whistling Village Meghalaya History And Story In Hindi : विश्व में एक-दूसरे को संबोधित करने का जो तरीका इस्तेमाल किया जाता है, वह है – “नाम लेना”. इसके अतिरिक्त क्या कोई अन्य तरीका इस्तेमाल किया जाता होगा? इस प्रश्न का उत्तर बिना समय गंवाए “ना” ही होगा.

लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि ऐसा नहीं है. भारत में एक ऐसा अनोखा गाँव है, जहाँ लोग एक-दूसरे को नाम लेकर नहीं, बल्कि सीटी बजाकर (whistling) बुलाते हैं. सीटी की ये धुन हर व्यक्ति के लिए विशिष्ट होती है, ताकि वह उसे पहचान सके. यह अनोखा गाँव “whistling village” के नाम से जाना जाता है. आइये जानते हैं इस गाँव के बारे में विस्तार से :

Kongthong Whistling Village Meghalaya

Kongthong Whistling Village Meghalaya | Image Source : patrika.com

कहाँ स्थित है Whistling Village?  

मेघालय (Meghalaya) के पूर्वी जिले खासी हिल्स (East Khasi Hills) के कांगथांग गाँव (Kongthong) को “Whistling Village” के नाम से जाना जाता है. मेघालय से ५६ किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गाँव में लोग एक-दूसरे को नाम से नहीं बल्कि सीटी बजाकर बुलाते हैं.

इस गाँव में हर शख्स के दो नाम होते हैं :

१. सामान्य नाम

२. सीटी की धुन (whistling tune) पर आधारित नाम

सामान्य नाम होने के बावजूद लोग एक-दूसरे को सीटी की धुन से बुलाना ज्यादा पसंद करते हैं. इस गाँव में १०९ परिवार हैं, जिसमें लगभग ६२७ लोग निवास करते हैं. ख़ास बात यह है कि गाँव में रहने वाले हर शख्स के नाम की सीटी की धुन अलग है. कभी किसी के नाम की धुन दूसरे के नाम से नहीं मिलती.

सीटी की धुन पर नाम रखना कांगथांग गाँव की एक परंपरा है, जो बरसों से चली आ रही है. इस परंपरा का नाम “Jingrwai Lawbei” है.

Jingrwai Lawbei प्रथा का प्रारंभ

“Jingrwai Lawbei” का अर्थ है – ‘song of the clan’s first mother’ (खासी प्रजाति की मूल माता का गीत). खासी जनजाति का समाज ‘मातृ-सत्तात्मक’ है. यहाँ जमीन और संपति माता से पुत्री को स्थानांतरित होते हैं. विवाह उपरांत पति अपनी पत्नि के घर आकर रहते हैं और उसका नाम अपनाते हैं.

खासी जनजाति के लोग “माँ” को परिवार की देवी मानते हैं. माता ही परिवार की सर्वेसर्वा मानी जाती है. “Jingrwai Lawbei” इसी ‘मातृ-सत्तात्मक’ समाज को परिलक्षित करता है और खासी जनजाति की पौराणिक मूल माता से संबंधित माना जाता है.

“Jingrwai Lawbei” प्रथा का जन्म कैसे हुआ? इस संबंध में लोगों का कहना है कि जितना पुराना यह गाँव हैं, उतनी ही पुरानी यह प्रथा भी है. यह गाँव लगभग ५ दशकों से अस्तिव में है. इसलिए कहा जा सकता है कि पिछले ५ दशकों से यहाँ यह प्रथा चली आ रही है.

कांगथांग गाँव पहाड़ों से घिरा हुआ है. ऐसे में कोई भी धुन कम समय में अधिक दूरी तय करती है. इसलिए लंबी दूरी में लोगों को पुकारने के लिए एक विकल्प के रूप में इस प्रथा का जन्म हुआ. यहाँ लोगों की कृषि आधारित आजीविका है. दिन का अधिकांश समय वे घर से बाहर खेतों में गुजारते हैं. वहाँ सीटी की धुन से एक-दूसरे को पुकारना आसान होता है. शिकार के दौरान भी यह प्रथा काम आती है. जब लोग समूह बनाकर शिकार पर जाते हैं, तो एक-दूसरे को सावधान करने सीटी की धुन का इस्तेमाल करते हैं. डकैतों से बचने के लिए भी इस सीटी का इस्तेमाल किया जाता है.

पौराणिक मान्यतायें

“Jingrwai Lawbei” की उत्पत्ति के संबंध में कुछ पौराणिक मान्यतायें भी और प्रचलित हैं. इस संबध में कुछ कथाएं भी सुनाई जाती है.

१. एक कथा अनुसार एक बार एक व्यक्ति जंगल से गुजर रहा था. वहाँ उसका सामना डकैतों से हो गया. वह अकेला था और डकैतों का सामना करने में अक्षम था. अपनी जान बचाने वह एक पेड़ पर चढ़ गया और एक अलग तरह की सीटी बजाकर अपने मित्र को पुकारने लगा. डकैतों को अंदाज़ा ही नहीं हुआ कि वह किसी को सहायता के लिए पुकार रहा है. इधर उसकी सीटी की आवाज़ सुनकर उसका मित्र कुछ लोगों सहित वहाँ पहुँचा और डकैतों से अपने मित्र की जान बचाई. तब से एक-दूसरे को विशिष्ट सीटी बजाकर संबोधित करने की प्रथा चली आ रही है.

२. एक पौराणिक मान्यता यह भी है कि गाँव के जंगल में रहनी वाली आत्माएं यदि किसी व्यक्ति का सामान्य नाम पुकारते हुए सुन लेंगी, तो वह व्यक्ति बीमार पड़ जायेगा. ऐसे में सीटी की धुन से पुकारा जाने वाला नाम उनकी रक्षा करता है.

कैसे रखा जाता है सीटी की धुन पर नाम?

बच्चे के जन्म के पूर्व गर्भवती महिलायें सीटी की एक विशेष धुन तैयार करती हैं. इस धुन को “birth call” कहा जाता है. बच्चे के जन्म के उपरांत सीटी की यह विशेष धुन ही बच्चे का नाम बनती है. बच्चे के सामने यह धुन बार-बार बजाई जाती है. बड़े होते-होते वह इस धुन को पहचानने लगता है. 

ख़ास बात ये हैं कि इस गाँव में किसी भी नाम के लिए सीटी की धुन दोहराई नहीं जाती. हर धुन दूसरी से पूर्णतः अलग होती है, ताकि लोगों को अपना नाम पहचानने में कोई दुविधा का सामना न करना पड़े. यहाँ तक कि किसी की मृत्यु हो जाने के बाद भी सीटी की उस धुन का दोबारा इस्तेमाल नहीं किया जाता.

कैसे बनाई जाती है सीटी की धुन?

कांगथांग गाँव पहाड़ों के बीच प्राकृतिक वातारण में बसा हुआ है. लोग यहाँ के प्राकृतिक वातारण के मध्य उपजी आवाज़ से धुन बनाते हैं. वे चिड़ियों की चहचाहट सुनकर धुन बनाते हैं. आधुनिक समय में बॉलीवुड के फ़िल्मी गानों का प्रभाव भी यहाँ देखा जा सकता है. अब लोग फ़िल्मी गानों की धुन पर भी नाम रखने लगे हैं. मोबाइल रिंग टोन का इस्तेमाल भी वे नाम बनाने में करते हैं.

सीटी की धुन पर रखा गया ये नाम १/२ से १ मिनट का होता है. हालांकि लोग हर समय पूरी धुन का इस्तेमाल न कर केवल प्रारंभिक भाग का इस्तेमाल की एक-दूसरे को पुकारने में करते हैं, जो ५-६ सेकंड का होता है. लेकिन जब ये काम पर होते हैं, तो एक-दूसरे के पूरे नाम की धुन इस्तेमाल करते हैं.

कांगथांग गाँव के लोगों का रहन-सहन और आजीविका

कांगथांग गाँव मन रहने वाली खासी जनजाति का समाज मातृ-सत्तात्मक है. यहाँ स्त्री को परिवार को मुखिया माना जाता है और वही परिवार की देखभाल करती हैं. हालांकि कई मानवशास्त्रियों का कहना है कि निर्णय लेने का अधिकार महिलाओं को नहीं होता. वे राजनीति में भी हिस्सा नहीं लेती. महिला और पुरुषों के बीच नियमों का स्पष्ट विभाजन हैं. महिलायें पारिवारिक कार्यों का संचालन करती हैं और पुरुष बाहरी कार्यों का.

कृषि यहाँ के लोगों की आजीविका का साधन है. यह गाँव मधुमक्खी पालन (Bee farming) के लिए भी जाना जाता है. गाँव का सबसे ज्यादा बिकने वाला उत्पाद मधुरस है, जो सर्वोत्तम क्वालिटी का होता है. ये मेघालय राज्य का ऐसा ख़ुद का उत्पाद है, जिसने राज्य को राष्ट्रीय और अंतर-राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है.

Jingrwai Lawbei प्रथा के संरक्षण हेतु प्रयास

पिछले कुछ वर्षों से अमरीका (USA) और यूरोप (Europe) के कई बुद्धिजीवियों  ने इस गाँव की यात्रा की है और यहाँ के संचार व्यवस्था (communication system) का अध्ययन किया है. हालांकि अपने ही देश की इस परंपरा के बारे में लोगों को जानकारी का अभाव है. लेकिन अब दिशा में प्रयास किया जा रहे हैं.

Whistling Village Meghalaya

Whistling Village Of India | Image Source : telegraphindia.com

संसद में पहली बार राज्य सभा के सांसद राकेश सिन्हा ने शून्य काल (zero hour) में एक चर्चा में इस गाँव का ज़िक्र किया. उन्होंने यहाँ की अनोखी प्रथा की विलुप्ति की संभावना जताते हुए सरकार से निवेदन किया कि इस गाँव की प्रथा को यूनेस्को (Unesco) की सूची में दर्ज किये जाने हेतु प्रयास किये जाने चाहिए. उन्होंने एक heritage library का निर्माण करने का सुझाव भी दिया, ताकि इस प्रथा को संरक्षित रखा जा सके. २०१७ में तुर्की की whisteled languge को Intangible Cultural Heritage में inscribe किया गया था.  

जिला प्रशासन द्वारा इस दिशा में कार्य किये जा रहे हैं. गाँव में मिट्टी के बने घर सेटअप किये हैं, जिन्हें ‘Traveller’s Nest’ कहा जाता है. जिसका उद्देश्य पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ ही गाँव की संस्कृति और परंपरा को संरक्षित रखना भी है.

कैसे पहुँचे? (How To Reach Whistling Village?)

कांगथांग गाँव पहुँचने के लिए नज़दीकी airport और railway station शिलांग (Shillong) है, जहाँ से कैब द्वारा khatarshong road तक पहुँचा जा सकता है. वहाँ से आगे का रास्ता पैदल तय करना पड़ता है, क्योंकि कांगथांग गाँव पहाड़ी पर स्थित है. ७ किलोमीटर की पहाड़ी चढ़कर वहाँ पहुँचा जा सकता है.

सर्वोत्तम समय (Best Time To Visit Whistling Village)

पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण भारी वर्षा के दौरान कांगथांग गाँव जाना ख़तरनाक हो सकता है. इसलिए जुलाई से सितंबर तक यहाँ की यात्रा न करना बेहतर है. अक्टूबर से मई के अंत तक का समय सर्वोत्तम है, जब मौसम ठंडा और सुखद होता है.


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